धरती धोरां रीं
कन्हैयालाल सेठिया (11 Sept. 1919- 11Nov. 2008)
सुजानगढ़ के संपन्न घराने में जन्मे सेठियाजी ने युवावस्था में ही अपने पिताश्री को स्पष्ट व विनम्र शब्दों में बता दिया कि उन्हें व्यवसाय के चक्कर से दूर रखे, वरना उन्हें दिया पैसा डूबता जाएगा | पिताजी ने भी समझ लिया कि उनका बेटा कलम का धनी है | सेठियाजी ने जीवन भर अपने पास कभी पैसा नहीं रखा | 1939 में सुजानगढ़ जैसे पिछड़े क्षेत्र में सेठियाजी ने हरिजन सेवा का कार्य शुरु कर दिया | भंगी-मुक्ति- आंदोलन चलाया 1940 में हरिजनों के लिए विद्यालय की स्थापना की | अपने जीवन के समस्त क्रिया-कलापों, चिंतन व मंथन के संबधं में उनकी पैनी दृष्टि रही है |
सेठियाजी ने राजस्थानी और हिन्दी के साथ उर्दू में भी लेखन किया | राजस्थानी की 14 हिन्दी की 18, उर्दू की दो पुस्तकों के इस विलक्षण रचनाकार को देश और दुनिया के कई सम्मान मिले, जिनमें पद्मश्री, साहित्य अकादमी पुरस्कार, मूर्तिदेवी पुरस्कार, राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति अकादमी का सूर्यमल्ल मिश्रण शिखर पुरस्कार और हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का विद्या वाचस्पति सम्मान भी शामिल है |
मुख्यतः एक कवि के तौर पर पहचाने जाने वाले सेठियाजी की सर्वश्रेष्ठ कृतियों में उनकी राजस्थानी गद्य कृति 'गळगचिया' का उल्लेख किया जा सकता इसमें प्रकृति और जीवन के विविध प्रसंगों को आधार बनाकर लिखी गई लघुकथाएं संकलित हैं | ये कहानियां पाठक के दिल को गहरे तक छूती है |
धरती धोरां री
धरती धोरा री !
आ तो सुरगा नै सरमावै, ईं पर देव रमण नै आवे,
ईं रो जस नर नारी गावै, धरती धोरा री !
सूरज कण कण नै चमकावै, चन्दो इमरत रस बरसावै,
तारा निछरावल कर ज्यावै, धरती धोरा री !
काळा बादलिया घहरावै, बिरखा घूघरिया घमकावै,
बिजली डरती ओला खावै, धरती धोरा री !
लुळ लुळ बाजरिया लैहरावै, मक्की झालो दे'र बुलावै,
कुदरत दोन्यूं हाथ लुटावै, धरती धोरा री !
पंछी मधरा मधरा बोलै, मिसरी मीठै सुर स्यूं घोलै,
झीणूं बादरियो पपोळै, धरती धोरां री !
नारा नागौरी हिद ताता, मदुआ ऊंट अणूंता खाथा!
ईं रे घोड़ा के बाता ? धरती धोरां री !
ईं रा फल फुलड़ा मन भावण, ईं रै धीणो आंगणा आंगण,
बाजै सगळा स्यूं बड़ भागण, धरती धोरां री !
ईं रो चित्तौड़ो गढ़ लूंठो, ओ तो रण वीरां रो खूंटो,
ईं रे जोधाणूं नौ कुंटो, धरती धोरां री !
आबू आभै रै परवाणै, लूणी गंगाजी ही जाणै,
ऊभो जयसलमेर सिंवाणै, धरती धोरां री !
ईं रो बीकाणूं गरबीलो, ईं रो अलवर जबर हठीलो,
ईं रो अजयमेर भड़कीलो, धरती धोरां री !
जैपर नगर्यां में पटराणी, कोटा बूंदी कद अणजाणी?
चम्बल कैवे आं री का'णी, धरती धोरां री !
कोनी नांव भरतपुर छोटो, घूम्यो सुरजमल रो घोटो,
खाई मात फिरंगी मोटो, धरती धोरां री !
ईं स्यूं नही माळवो न्यारो, मोबी हरियाणो है प्यारो,
मिलतो तीन्या रो उणयारो, धरती धोरां री !
ईडर पालनपुर है ईं रा, सागी जामण जाया बीरां,
औ तो टुकड़ा मरू रै जी रा, धरती धोरां री !
सौरठ बंध्यो सोरठां लारै, भेळप सिंध आप हंकारै,
मूमल बिसर्यो हेत चितारै, धरती धोरां री !
ईं पर तनड़ो मनड़ो वारां, ईं पर जीवण प्राण उवारां,
ईं री धजा उडै गिगनारां, धरती धोरां री !
ईं नै मोत्या थाल बधावां, ईं री धूल लिलाड़ लगावां,
ईं रो मोटो भाग सरावां, धरती धोरां री !
ईं रै सत री आण निभावां ईं रै पत नै नही लजावां,
ईं नै माथो भेंट चढा़वां, भायड़ कोड़ा रीं,
धरती धोरां री !
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