Saturday, 30 January 2016

क्षत्रिय/राजपूतों के लिए ध्यान में रखने योग्य कुछ बातें:

१- अपने पूर्वजों का सम्मान करें तथा अपने बच्चों को पूर्वजों की कथाओं/गुणों से परिचित कराएँ.
२- अपने-अपने घरों में महाभारत,गीता,रामायण एवं महापुरुषों से सम्बंधित गाथाएं आदि ग्रंथों को अवश्य रखें तथा बच्चों को कभी-कभी उसका पाठ करने के लिए प्रेरित करें तथा उसे आप भी सुनें. क्षत्रिय महापुरुषों का चित्र भी अपने घरों के दीवालों पर लगायें.
३- अपने बच्चों का नामकरण भी पूर्वजों के नाम के अनुरूप रखें तथा नाम के साथ अपनी क्षत्रियता की पहचान के लिए कुलों की उपाधियों को रखना न भूलें, क्योंकि यथानाम तथागुण चरितार्थ होती है. बच्चों में इससे क्षत्रियोचित गुणों का विकास होता है.
४- नाम भी ऐसा रखें जिससे बच्चे अपने आपको गौरवान्वित महसूस करें. नैतिक शिक्षा एवं अनुशासन का भी पाठ पढ़ायें तथा अपने बच्चों को आज्ञाकारी बनायें.
५-अपने वचन का पालन करें. आदर्श आचरण स्थापित करें तथा अच्छे आचरण के लिए बच्चों के साथ-साथ दूसरों को भी प्रेरित करें.
६- बच्चों को मर्यादा का उल्लंघन नहीं करने की शिक्षा दें तथा बड़ों का आदर करना सिखाएं.
७. बच्चों को पढने के साथ-साथ खेलने की भी पूरी आज़ादी दें तथा शारीरिक गठन के लिए व्यायाम खेलकूद के लिए भी प्रोत्साहित करें.
८- लड़कियों की शिक्षा में भी कोई कमी या कोताही नहीं बरतें तथा उन्हें हर तरह की शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करें.
९- अगर संभव हो तो दहेज़ रहित शादी करें/कराएँ तथा आदर्श विवाह को प्रोत्साहित करें. शादी-विवाह सादगीपूर्ण तरीके से करें तथा अनावश्यक खर्चों से बचने का प्रयास करें. साधनविहीन एवं आर्थिक रूप से पिछड़े भाई बंधुओं को शादी विवाह आदि में यथासंभव सहयोग करें. सामूहिक शादी का आयोजन कर
फिजूलखर्ची से बच सकते हैं. यदि गाँव में एक ही समाज में कई घरों में शादियाँ हो तो सामूहिक पंडाल बनाकर और सामूहिक भोज का आयोजन कर फिजूलखर्ची पर रोक लगाया जा सकता है.
१०-क्षत्रिय/राजपूत कहने में गौरव का अनुभव करें. स्कूल/कॉलेज/घर/मकान/दुकान/मोहल्ला/मार्ग/संस्था/प्रतिष्ठान आदि का नामकरण भी अपने महापुरुषों के नाम पर करें या राजपूत से सम्बंधित कोई पहचान के नाम पर रखें ताकि क्षत्रियता/राजपूत होने का बोध हो.
११. संकोच या भय का सर्वथा परित्याग करें. साहस का परिचय दें. साहसी एवं दृढ निश्चयी बनें.
१२- पौराणिक परम्पराओं एवं मान्यताओं तथा कुल की मर्यादाओं का सख्ती से पालन करें/कराएँ.
१३- राजपूत जाति के लड़के या लड़कियों का विवाह राजपूत समाज में ही होना श्रयस्कर हो सकता है. अंतरजातीय विवाह संबंधों को कतई प्रोत्साहन नहीं दें. क्योंकि इसके गंभीर परिणाम भविष्य में सामने आते हैं.
१४- इतिहास प्रसिद्द महापुरुषों की जयंतियां सामूहिक रूप से मनाई जाय तथा उनके आदर्शों पर चलने का बार-बार संकल्प करें.
१५- जातीय जीवन को प्रेरणा देने वाले त्योहारों में सबसे महत्वपूर्ण है विजयादशमी का त्यौहार. क्षत्रियों/राजपूतों के लिए इस पर्व से बढ़कर कोई त्यौहार नहीं है. अतएव इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ सामूहिक रूप से मनाएं. इस अवसर पर शस्त्रास्त्र प्रदर्शन एवं सञ्चालन,प्रतिस्पर्धा, घुडदौड़, आखेट, सामूहिक खेल, सामूहिक भोज आदि का कार्यक्रम चलाये जा सकते हैं.
१६- शस्त्रास्त्र निश्चित तौर पर प्रत्येक घरों में अवश्य रखा जाय एवं उसका प्रदर्शन समय-समय पर अवश्य करते रहें ताकि आपका मनोबल हमेशा बना रहे.
१७- शादी-विवाह, सभा-सम्मेलनों, सामूहिक त्योहारों में अपने पारम्परिक वेश-भूषा को अवश्य धारण करें. हमारी पारम्परिक वेश-भूषा पगड़ी,शेरवानी, धोती, कुर्ता और तलवार रहा है. अतः शादी-विवाह के अवसरों पर वर पक्ष एवं वधु पक्ष दोनों पारम्परिक वेश-भूषा का इस्तेमाल करें.
१८- सरकारी सेवा में, सेना में, या पुलिस में नौकरी करने वाले अनुशासन, ईमानदारी, कार्यदक्षता और सच्चरित्रता में अपने उच्चाधिकारियों एवं अपने सहयोगियों के सामने आदर्श प्रस्तुत करें, ताकि आपकी श्रेष्टता सब जगह सिद्ध हो सके. सबों को यह आभास हो कि आप सभी स्थानों पर महान क्षत्रिय/राजपूत चरित्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. ऐसा कोई कार्य नहीं करें, जिससे उनकी महान परम्परा, स्थापित मर्यादा व जाति पर कलंक का धब्बा लगे तथा क्षत्रिय/राजपूत जाति बदनाम हो.
१९- नौकरी के अतिरिक्त व्यवसाय में भी ईमानदारी से धर्मपूर्वक धनार्जन करें. ठगने या धोखाघड़ी से धनार्जन का ख्याल मन में भी कभी न लायें.
२०- दलित वर्ग या श्रमजीवी वर्ग, दीन असहाय और पथ विचलित वर्ग की रक्षा कर न्याय और सच्चाई की रक्षा करना क्षात्र-धर्म का मूल सिद्धांत एवं कर्तव्य है, इसका अनुपालन करें.
२१-हमे इस बात का हमेशा ध्यान में रखना है कि क्षत्रिय/राजपूत एक विकसित जाति और कॉम है. हम सभी जातियों में श्रेष्ठ हैं, इसे कदापि नहीं भूलना चाहिए. आपके आचार-विचार से हमारा पूर्ण समाज, प्रदेश एवं राष्ट्र प्रभावित होता है. हिन्दू संस्कृति में जो भी नियम कायदे स्थापित हैं वह
क्षत्रियों/राजपूतों द्वारा स्थापित हैं इसलिए इसका उल्लंघन अपने निर्मित नियमों से ही विचलित होना है. अतएव इसका पालन करना और कराना हमारा पुनीत कर्त्तव्य है, हमारा दायित्व बनता है।

धरती माँ बोलो अवध के मेरे पुरुषोत्तम राम कहाँ?

धरती माँ बोलो अवध के मेरे पुरुषोत्तम राम कहाँ?
यमुना बोलो कालिया मर्दन करने वाले घनश्याम कहाँ?

भीष्म का शौर्य कहाँ, बलों के धाम बलराम कहाँ?
बोलो मेवाड़ फिर एकबर मेरा महाराणा संग्राम कहाँ?

राजस्थान के कण-कण बोलो महाराणा प्रताप कहाँ?
अरावली की मिटटी बोलो झाला का अपूर्व त्याग कहाँ?

कहाँ है अर्जुन का गांडीव भीमसेन का बल अपार कहाँ?
धर्मराज का वह भाला अभिमन्यु की तलवार कहाँ?

कहाँ है कर्ण की दानवीरता कवच और कुंडल कहाँ?
राजा जनक की बाणी विश्वामित्र का कमंडल कहाँ?

दिल्ली बोलो पृथ्वीराज का है शब्दवेदी वाण कहाँ?
कहाँ हैं मालवा के परमार दिल्ली के चौहान कहाँ?

वसुधा बोलो आल्हा उदल का विजय अभियान कहाँ?
धरती कहाँ है उनकी कन्नौज और वीर मलखान कहाँ?

कहाँ बालक भरत की वीरता छ्त्रशाल का शौर्य कहाँ?
बिहार की धरती बोलो अशोक चन्द्रगुप्त मौर्य कहाँ?

कहाँ है लवकुश की वीरता वीर बालक चंड का त्याग?
कहाँ खो गयी धरती में क्षत्राणियों का शौर्य सुहाग?

मातृभूमि पर शीश चढाने वाली कहाँ है हाडा रानी?
जौहर व्रत को जन्म देने वाली कहाँहैं पद्मिनी रानी?

कहाँ है वीर कुंवर का खडग रानी लक्ष्मी की तलवार?
गूंज रहा अभी भी कण कण में कुंवर सिंह की ललकार?

वीर शिवाजी छत्रशाल दुर्गादास अमरसिंह राठौड़ कहाँ?
कहाँ छिपे हैं इतने वीर सारे बड़ादो उनका ठौर कहाँ?

खोज लायुं उन्हें धरती पर माँ मुझे तुम बतला दो,
धरती फिर वीरों से भर जाये मेरे मन को बहला दो,

द्रुम कुसुम सभी मुरझा गए आज वनदेवी श्रीहीन हुयी,
क्षत्रियो का मुख निस्तेज है वसुधा वीर विहीन हुयी,

धरती माँ बोलो क्या लौटेगी क्षत्रियों की शान नहीं?
एकबार फिर से क्या जागेगा वीरभूमि राजस्थान नहीं?

जय महाराणा प्रताप

मुगल काल में पैदा हुआ वो बालक कहलाया राणा
होते जौहर चित्तौड़ दुर्ग फिर बरसा मेघ बन के राणा

हरमों में जाती थीं ललना बना कृष्ण द्रौपदी का राणा
रौंदी भूमि ज्यों कंस मुग़ल बना कंस को अरिसूदन राणा

छोड़ा था साथियों ने भी साथ चल पड़ा युद्ध इकला राणा
चेतक का पग हाथी मस्तक ज्यों नभ से कूद पड़ा राणा

मानसिंह भयभीत हुआ जब भाला फैंक दिया राणा
देखी शक्ति तप वीर व्रती हाथी भी कांप गया राणा

चहुँ ओर रहे रिपु घेर देख सोचा बलिदान करूँ राणा
शत्रु को मृगों का झुण्ड जान सिंहों सा टूट पड़ा राणा

देखा झाला यह दृश्य कहा अब सूर्यास्त होने को है
सब ओर अँधेरा बरस रहा लो डूबा आर्य भानु राणा

गरजा झाला के भी होते रिपु कैसे छुएगा तन राणा
ले लिया छत्र अपने सिर पर अविलम्ब निकल जाओ राणा

हुंकार भरी शत्रु को यह मैं हूँ राणा मैं हूँ राणा
नृप भेज सुरक्षित बाहर खुद बलि दे दी कह जय हो राणा
कह नमस्कार भारत भूमि रक्षित करना रक्षक राणा!

चेतक था दौड़ रहा सरपट जंगल में लिए हुए राणा
आ रहा शत्रुदल पीछे ही नहीं छुए शत्रु स्वामी राणा

आगे आकर एक नाले पर हो गया पार लेकर राणा
रह गए शत्रु हाथों मलते चेतक बलवान बली राणा
ले पार गया पर अब हारा चेतक गिर पड़ा लिए राणा
थे अश्रु भरे नयनों में जब देखा चेतक प्यारा राणा

अश्रु लिए आँखों में सिर रख दिया अश्व गोदी राणा
स्वामी रोते मेरे चेतक! चेतक कहता मेरे राणा!

हो गया विदा स्वामी से अब इकला छोड़ गया राणा
परताप कहे बिन चेतक अब राणा है नहीं रहा राणा

सुन चेतक मेरे साथी सुन जब तक ये नाम रहे राणा
मेरा परिचय अब तू होगा कि वो है चेतक का राणा!

अब वन में भटकता राजा है पत्थर पे सोता है राणा
दो टिक्कड़ सूखे खिला रहा बच्चों को पत्नी को राणा

थे अकलमंद आते कहते अकबर से संधि करो राणा
है यही तरीका नहीं तो फिर वन वन भटको भूखे राणा

हर बार यही उत्तर होता झाला का ऋण ऊपर राणा
प्राणों से प्यारे चेतक का अपमान करे कैसे राणा

एक दिन बच्चे की रोटी पर झपटा बिलाव देखा राणा
हृदय पर ज्यों बिजली टूटी अंदर से टूट गया राणा

ले कागज़ लिख बैठा, अकबर! संधि स्वीकार करे राणा
भेजा है दूत अकबर के द्वार ज्यों पिंजरे में नाहर राणा

देखा अकबर वह संधि पत्र वह बोला आज झुका राणा
रह रह के दंग उन्मत्त हुआ कह आज झुका है नभ राणा

विश्व विजय तो आज हुई बोलो कब आएगा राणा
कब मेरे चरणों को झुकने कब झुक कर आएगा राणा

पर इतने में ही बोल उठा पृथ्वी यह लेख नहीं राणा
अकबर बोला लिख कर पूछो लगता है यह लिखा राणा

पृथ्वी ने लिखा राणा को क्या बात है क्यों पिघला राणा?
पश्चिम से सूरज क्यों निकला सरका कैसे पर्वत राणा?

चातक ने कैसे पिया नदी का पानी बता बता राणा?
मेवाड़ भूमि का पूत आज क्यों रण से डरा डरा राणा?

भारत भूमि का सिंह बंधेगा अकबर के पिंजरे राणा?
दुर्योधन बाँधे कृष्ण तो क्या होगी कृष्णा रक्षित राणा?

अब कौन बचायेगा सतीत्व अबला का बता बता राणा?
अब कौन बचाए पद्मिनियाँ जौहर से तेरे बिन राणा?

यह पत्र मिला राणा को जब धिक्कार मुझे धिक्कार मुझे
कहकर ऐसा वह बैठ गया अब पश्चाताप हुआ राणा

चेतक झाला को याद किया फिर फूट फूट रोया राणा
बोला इस पापकर्म पर तुम अब क्षमा करो अपना राणा

और लिख भेजा पृथ्वी को कि नहीं पिघल सके ऐसा राणा
सूरज निकलेगा पूरब से, नहीं सरक सके पर्वत राणा

चातक है प्रतीक्षारत कि कब होगी वर्षा पहली राणा
भारत भूमि का पुत्र हूँ फिर रण से डरने का प्रश्न कहाँ?

भारत भूमि का सिंह नहीं अकबर के पिंजरे में राणा
दुर्योधन बाँध सके कृष्ण ऐसा कोई कृष्ण नहीं राणा

जब तक जीवन है इस तन में तब तक कृष्णा रक्षित राणा
अब और नहीं होने देगा जौहर पद्मिनियों का राणा!

किसका भला किया है दारू ने

किसका भला किया है दारू ने
बुद्धि का हरण किया है दारूने
पैसा का हरण किया है दारूने
झगड़ो को जन्म दिया है दारूने
बच्चों को रूलाया दारू ने
घरों को उजाड़ा हैं दारू ने

इंसान को हैवान बनाया है दारू ने
सीख लिया जिसने पीना दारू को
समझो किनारा आ गया है जीवन का
पहले लोग पीना सीखते हैं दारू को
फिर पीने लगती है दारू इंसान को
ए मूर्ख पीने वाले दारू को

कुछ सोचो समझो विचार करो
न बनाओ अपने बच्चों को अनाथ
दुनिया न देगी कभी उनका साथ
अभी समय है करो प्रतीज्ञा आज
न पियेगे न पिलायेगे कभी दारू आप

बहुत हो गया ये पिना पिलाना
मत मानो इसे मान मनवार
अब सिर्फ नफरत करो दारू से
हम राजपूतो ने बहुत कुछ खो दिया है इस दारू से
अब हमेंखोया हुआ स्वाभिमान पाना है।

क्षत्रिय धर्म को भूल,राजपूत हम बन गये !

क्षत्रिय धर्म

क्षत्रिय धर्म को भूल, राजपूत हम बन गये !

छोङे सारे क्षत्रिय सँस्कार, अँहकार मे तन

गये !

क्षत्रिय धर्म मे पले हुए हम शिर कटने पर भी

लङते थे !

दिख जाता अगर पापी और अन्याय कहीं

शेरो कि भाँती टूट पङते थे !

शेरो सी शान, हिमालय सी ईज्जत, और

गौरवशाली इतिहास का पूरखो ने हमे

अभयदान दिया !

जनता के सेवक थे हम लोगो ने भी हमे सम्मान

दिया !

छूट गई शान, टुट गयी इज्जत पी दारु छोङे

सँस्कार !

ईतिहास का हमने अपमान किया भूल गई

क्या दूनिया सम्मान की खातिर लाखो

क्षत्राणियो ने अग्नी श्नान किया !!

तो फिर दासी को जोधा बता राजपूत

का क्यो अपमान किया !

दया हम दिखाते है जब ही तो चौहान ने

गोरी को 18 बार छोङ दिया !!

पर रजपूती रँग मे रँग जाये राजपूत तो देखो

बिन आँखो के चौहान ने गोरी का

शिर फोङ दिया !

अकेले महाराणा ने दिल्ली कि सल्तनत

को हिला दिया !

वीर दुर्गादास ने मुगल के सपनो को मिट्टी

मे मिला दिया !!

अरे हम एक नही रहै तो दुनिया ने हमे भूला

दिया !

भूल गई क्या दुनिया-

हम उनके वँशज है जिन्होने रावण,कँस जैसो

को मिट्टी मे मिला दिया

राजपूताने की कुरबानियों की......

राजपूताने की कुरबानियों की 
  कभी शाम नही होने देंगे 
          पूर्वजो की कुरबानियों को 
            बदनाम नही होने देंगे ।।
लाएंगे फिरसे राजपूताने का 
  एक उगता हुआ सूरज 
           जिसे फिरसे ना कभी 
             अस्त होने देंगे ।।
बची हो जो एक बून्द भी 
  गरम लहू की 
            तब तक राजपूताने का आँचल 
              नीलाम नही होने देंगे ।।

जय भवानी
हर हर महादेव

आओ क्षत्रिय तुम्हे दिखाएँ झांकी पूर्वजों के शान की..

आओ क्षत्रियों तुम्हे दिखाएँ झांकी पूर्वजों के शान की!
जो मर मिट गये वतन पर परवाह न की निज प्राण की!!
राजपूताने में लहराता देखो महाराणा प्रताप का स्वाभिमान है!
जिनका सर न कभी झुका यह गौरव अभिमान है!!
पूरे भारत के कण-कण में गूंजता अभी भी स्वर है!
जहाँ का बच्चा-बच्चा अभी भी मरने को तत्पर है!!
राणा के हम हैं वंशज यह गौरव अभिमान है!
जो मर मिट गये वतन पर परवाह न की निज प्राण की!!
ये है अपना राजपुताना है नाज इन्हें तलवारों पर!
शान से सीखा जीना चलते न किसी के सहारों पर!!
खन-खन बजती थी तलवारें पर्वत बीच पहाड़ों पर!
सर पे कफ़न बाँध निकल पड़ते अरि के दहाडों पर!!
राणा प्रताप की जय बोलो जय बोलो प्रथ्वीराज चौहान की!
जो मर मिट गये वतन पर परवाह न की निज प्राण की!!
दच्छिन में जब शिवाजी ने शत्रुओं को ललकारा था!
चढ़कर शत्रुओं के सीने पर बार-बार दहाडा था!!
यह है अजमेर दिल्ली गढ़ है वीर चौहानों की!
फाड़कर सीना रख देते थे पर्वत और चट्टानों की!!
उनपर नहीं चल पाया था माया जादू जयचंदों की!
परवाह नहीं थी कभी भी मुहम्मद गोरी के फंदों की!!
आओ फिर याद करें पृथ्वीराज के बलिदान की!
जो मर मिट गये वतन पर परवाह न की निज प्राण की!!
यह देखो जगदीशपुर की कोठी लहरा रही है शान से!
वीर कुंवर सिंह की जन्मस्थली खड़ा है स्वाभिमान से!!
अस्सी वर्ष की उम्र में भी अंग्रेजों को ललकारा था!
जिनकी सेनाएं फिरंगियों को चुन-चुनकर मारा था!!
आओ फिर खोज करें वह वीर भुजा महान की!
जो मर मिट गये वतन पर परवाह न की निज प्राण की!!
ये है उज्जैन मालवा गढ़ है वीर परमारों की!
लेकर जान हथेली पे जिन्हें परवाह नहीं तलवारों की!!
ये है आमेर जयपुर धरती वीर कच्च्वाहों की!
वीर साहसी करते नहीं परवाह किसी अफवाहों की!!
यह तो है बुंदेलखंड जहाँ, चलती हर-हर बुंदेलों की!
आल्हा उदल का गढ़ महोबा यह भूमि है चंदेलों की!!
यह है जोधपुर वीकानेर ठिकाने वीर राठौरों की!
अरि जाकर छिप जाते थे जब पड़ती मार बौछारों की!!
आओ फिर याद करें इनके, त्याग और बलिदान की!
जो मर मिट गये वतन पर परवाह न की निज प्राण की!!
उठो वीर जवानों खतरे में आन पड़ी है आज़ादी!
साजिश ने हमे बिखेरा है हम झेल रहे है बर्बादी!!
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है!
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है!!
जागो-जागो वीर क्षत्रियों रक्षा करो स्वाभिमान की!
जो मर मिट गये वतन पर परवाह न की निज प्राण की!!
     
जय भवानी
जय क्षात्र धर्म

सांगा के अस्सी घाव वहाँ.....बाबर की होती हार जहाँ।

चितौड धधकता अंगारा।
दुश्मन भी हमेशा है हारा।
चूण्डा का त्याग रहा न्यारा।
जौहर ज्वाला जग उजियारा।।....
मेवाडी धरती शूरों की।
यह सन्तो और महावीरों की।।
यह राणा पूंजा तीरों की।
राणा प्रताप से वीरों की।।...
जौहर की ज्वाला जलती है।
वहाँ सुन्दर कलिया खिलती है।।
सतीत्व बचानें के कारण।
जौहर में जिन्दा जलती है।।...
भील जाति का मान यहाँ।
जो राजतिलक करे राणा का।
है क्षत्रीयोचित सम्मान यहाँ।।...
गौरा बादल और कुम्भा की।
यह वीर बहादुर सांगा की।।
यह उदयसिह महाराणा की।
यह भामाशाह महादानी की।।...
हारित ॠषि की शान यहां।
जहाँ मर्यादा का मान रहा।।
एकलिगनाथ भगवान यहाँ।
बप्पा रावल की आन यहाँ।।...
हठ अमीर और चूण्डा की।
सांगा के अस्सी घाव वहाँ।।
बाबर की होती हार जहाँ।
चित्तौड ने रखा मान वहाँ।।...
क्षत्राणी रानी कर्मवती।
वह बन जाती है वीरमती।।
जौहर की ज्वाला में जलती।
वह पद्मनी सी है महासती।।...
मीरां ने रखी आन यहाँ।
रैदास ने रखी शान यहाँ।।
श्री नाथ धाम और चारभुजा।
श्री रिषभदेव का मान यहाँ।।...
यह परम्परा रजपूतों की।
रण में मरने की ठानी है।।
जौहर ज्वाला में जल मरना।
क्षत्राणी शान पुरानी है।।...
गौरा बादल बलिदान यहाँ।
जयमल पता का मान यहाँ।।
पन्नाधाय का त्याग यहाँ।
बलिदानी का बलिदान यहाँ।।...
राणा कुम्भा का नाम अमर।
दुश्मन थररता देख मगर।।
कुम्भलगढ भी है अमरधाम।
जहाँ सिर झुकते, करते सलाम।।...
वह वीर बहादुर कुम्भा था।
हिमाचल जैसा खम्भा था।।
वह सौ हाथी सा बलशाली।
वह पराक्रमी और महाबली।।...
मालवा बादशाह (महमूद) कैद हुआ।
तो कीर्तीस्तम्भ निर्माण हुआ।।
यह एक अनोखी यादगार।
जो इतिहासों में नाम हुआ।।...
तलवारें लप-लप करती थी।
चिन्गारी खूब चमकती थी।।
दुश्मन छाती में घुसते ही।
वे चीत्कारें भी करती थी।।...
रण में डंका जब बजता है।
हाथों मे खडग खडकता है।।
आँखों में लहँू उतरता है।
दुश्मन भी भागा फिरता है।।...
खाण्डों से योद्धा सजते है।
सेना में डंके बजते है।।
केसरियां बाना सजते है।
सिर कटत्े हैं धड लडते है।।...
वीरों की बजती तलवारें।
उठती रहती है चीत्कारें।।
घोडों की उठती हुंकारे।
हाथी चिघाडते है न्यारे।।...
हाडी सेनानी देती है।
चारू को जीवन देती है।।
यूँ चूण्डा लडने जाता है।
दुश्मन भी मुँह की खाता है।।...
नहीं चाह उसे है जीने की।
बस, कुल की रक्षा ही करने की।।
दोनों कुल की वह शोभा है।
वह जन-मन की आशा है।।...
यह स्वर्ग रही मेवाड धरा।
इतिहासकार भी नमन करै।।
भक्ति शक्ति पावन भूमि।
जहाँ तलवारें चीत्कार करै।।...
"प्रेमी" तेरी पावन भूमि।
तू माटी सिर पे चढा रहा।।
इस माटी हित मरने वाले।
वह अमर शहीद ही सदा रहा।।...

भगवान लाल शर्मा "प्रेमी" उदयपुर (राज.)

क्षत्रियो ने उठाई है तलवार।

जय क्षत्रिय||

पापो का भार ।
क्षत्रियो ने उठाई है तलवार।
रावण का जब बढ गया
था अँहकार।
तो राम ने लिया था
क्षत्रिय कुल मेँ अवतार।
जब बहूत मारा था लोगो
को पापी कँस ने।
तो लिया था अवतार
कृष्ण ने भी क्षत्रिय वँश मेँ॥
परमात्मा ने हमेँ भी क्षत्रिय
कुल मेँ जन्म दिया हैँ।
पर हमने तो क्षत्रिय सँस्कारो
को ही खत्म कर दिया है॥
क्षत्रिय महान क्षात्र धर्म से बनते थेँ।
पर वो हमारे जैसे आपस
मेँ नहीँ तनते थे॥
हमने तो दिया है उस क्षात्र
धर्म को ही अब छोङ।
कुल मर्यादा और कर्त्तव्य
से ही लिया अपना मुख मोङ॥
अब तो हमेँ क्षात्र धर्म की
राह पे चलना होगा।
बहूत डगमगा गये कदम
देश और समाज के युवाओँ अब तो
हमे सम्हलना होगा॥
अगर अब भी नहीँ सम्हलेँ
तो साथियोँ हमारा ईतिहास
बदल जायेगा
अगर जग गया क्षत्रिय तो
जमाना और ये देश बदल जायेगा॥
जय क्षत्रिय ॥
जय जय क्षात्र धर्म ॥

जय भवानी ।।

भारत का मान बिन्दु

भारत का मान बिन्दु, केशरिया यह झण्डा हमारा !
मर के अमर हो जाना, पर यह झण्डा न निचे झुकाना !!

लाखो चढ़े थे शमा पर किन्तु बुझने न दी यह ज्योति !
बलिदानों की ये कथाएँ बातों में ना तूम भुलाना !!

बूंदी की शान कुम्भा ने, मेवाड़ में लड़कर बचाई !
उसने नकली किला बचाया, तुम असली निशां ना झुकाना !!

हाथी से टक्कर दिलाकर, छाती से किला तुड़ाया !
वीरों की अमर कहानी, चुल्लू पानी में ना तुम डुबाना !!

पच्चीस वर्ष कष्टों के, प्रताप ने वन में सहे थे !
स्वतंत्रता  के दीवानों, का भी यही तराना !!

ओ भारत के वीर सपूतो, ओ राष्ट्र के तुम सितारों !
जननी की लाज कभी तुम, अपने न हाथो लुटाना !!

अपमान औ' ठोकर की अग्नि अश्रु बूंदों से ना तुम बुझाना !
बुझाना तुम्हे हो कभी तो, खूं की नदी से बुझाना !!

श्री तन सिंह
मार्च, 1946 !

Monday, 18 January 2016

रणरागिनी महारानी दुर्गावती

णरागिनी महारानी दुर्गावती

मुगल सम्राट अकबर की विशाल सेना को पराजित कर वीरता और साहस का प्रतिमान स्थापित करने वाली रानी दुर्गावती जी मध्यकालीन भारत में जब देश भर के कई राजा मुगल सम्राट अकबर की गुलामी स्वीकार कर रहे थे तब बहुत से स्वाभिमानी राजपूत भी अपनी आन बान और शान के लिए लड़ रहे थे। इन्हीं में से एक रानी दुर्गावती ने अकेले अपने सामथ्र्य के बल पर अकबर को चुनौती दी थी।

चंदेल राजवंश में जन्मी रानी दुर्गावती राजपूत राजा कीरत राय की बेटी थी। उनका जन्म 5 अक्टूबर 1524 को बांदा में हुआ था। उनका विवाह गौंड राजवंश के दलपत शाह से हुआ था। इस विवाह के बाद चंदेल और गौंड राज्यों की सम्मिलित शक्ति ने शेरशाह सूरी की बढ़ती शक्ति पर लगाम लगाने का कार्य किया।

दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं. वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया
अपने पति की मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती ने अपने एकमात्र पुत्र वीर नारायण को संभालने के साथ-साथ अपने साम्राज्य की भी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली।

दुर्भाग्यवश उस समय अकबर के सेनापति ख्वाजा अब्दुल मजीद असफ खान ने मुगल सेना के साथ रानी दुर्गावती के राज्य पर हमला कर दिया। शुरूआती युद्ध जीतने के बाद रानी दुर्गावती हारने लगी परन्तु उन्होंने मैदान छोड़ने और हार स्वीकार कर अकबर की गुलामी करने के बजाय आत्महत्या करना स्वीकार किया।

24 जून 1564 को रानी दुर्गावती ने गंभीर रूप से घायल होने के बाद अपने आपको मुगलों के हाथों अपमान से बचाने के लिए वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं खंजर घोंपकर आत्महत्या कर ली और अपने जीते जी जिन्दा मुगलो के हाथ ना आई और अपने सतीत्व और राजपूती धरम को निभाया

रानी दुर्गावती पर मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ |

Rani Padmini

रावल समरसिंह के बाद उनका पुत्र रत्नसिंह चितौड़ की राजगद्दी पर बैठा | रत्नसिंह की रानी पद्मिनी अपूर्व सुन्दर थी | उसकी सुन्दरता की ख्याति दूर दूर तक फैली थी | उसकी सुन्दरता के बारे में सुनकर दिल्ली का तत्कालीन बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी पद्मिनी को पाने के लिए लालायित हो उठा और उसने रानी को पाने हेतु चितौड़ दुर्ग पर एक विशाल सेना के साथ चढ़ाई कर दी | उसने चितौड़ के किले को कई महीनों घेरे रखा पर चितौड़ की रक्षार्थ तैनात राजपूत सैनिको के अदम्य साहस व वीरता के चलते कई महीनों की घेरा बंदी व युद्ध के बावजूद वह चितौड़ के किले में घुस नहीं पाया | तब उसने कूटनीति से काम लेने की योजना बनाई और अपने दूत को चितौड़ रत्नसिंह के पास भेज सन्देश भेजा कि “हम तो आपसे मित्रता करना चाहते है रानी की सुन्दरता के बारे बहुत सुना है सो हमें तो सिर्फ एक बार रानी का मुंह दिखा दीजिये हम घेरा उठाकर दिल्ली लौट जायेंगे |

सन्देश सुनकर रत्नसिंह आगबबुला हो उठे पर रानी पद्मिनी ने इस अवसर पर दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने पति रत्नसिंह को समझाया कि ” मेरे कारण व्यर्थ ही चितौड़ के सैनिको का रक्त बहाना बुद्धिमानी नहीं है | ”

रानी को अपनी नहीं पुरे मेवाड़ की चिंता थी वह नहीं चाहती थी कि उसके चलते पूरा मेवाड़ राज्य तबाह हो जाये और प्रजा को भारी दुःख उठाना पड़े क्योंकि मेवाड़ की सेना अल्लाउद्दीन की विशाल सेना के आगे बहुत छोटी थी |

सो उसने बीच का रास्ता निकालते हुए कहा कि अल्लाउद्दीन चाहे तो रानी का मुख आईने में देख सकता है |
अल्लाउद्दीन भी समझ रहा था कि राजपूत वीरों को हराना बहुत कठिन काम है और बिना जीत के घेरा उठाने से उसके सैनिको का मनोबल टूट सकता है साथ ही उसकी बदनामी होगी वो अलग सो उसने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया |
चितौड़ के किले में अल्लाउद्दीन का स्वागत रत्नसिंह ने अथिती की तरह किया |
रानी पद्मिनी का महल सरोवर के बीचों बीच था सो दीवार पर एक बड़ा आइना लगाया गया रानी को आईने के सामने बिठाया गया |
आईने से खिड़की के जरिये रानी के मुख की परछाई सरोवर के पानी में साफ़ पड़ती थी वहीँ से अल्लाउद्दीन को रानी का मुखारविंद दिखाया गया | सरोवर के पानी में रानी के मुख की परछाई में उसका सौन्दर्य देख देखकर अल्लाउद्दीन चकित रह गया और उसने मन ही मन रानी को पाने के लिए कुटिल चाल चलने की सोच ली जब रत्नसिंह अल्लाउद्दीन को वापस जाने के लिए किले के द्वार तक छोड़ने आये तो अल्लाउद्दीन ने अपने सैनिको को संकेत कर रत्नसिंह को धोखे से गिरफ्तार कर लिया |

रत्नसिंह को कैद करने के बाद अल्लाउद्दीन ने प्रस्ताव रखा कि रानी को उसे सौंपने के बाद ही वह रत्नसिंह को कैद मुक्त करेगा |

रानी ने भी कूटनीति का जबाब कूटनीति से देने का निश्चय किया और उसने अल्लाउद्दीन को सन्देश भेजा कि -” मैं मेवाड़ की महारानी अपनी सात सौ दासियों के साथ आपके सम्मुख उपस्थित होने से पूर्व अपने पति के दर्शन करना चाहूंगी यदि आपको मेरी यह शर्त स्वीकार है तो मुझे सूचित करे | रानी का ऐसा सन्देश पाकर कामुक अल्लाउद्दीन के ख़ुशी का ठिकाना न रहा ,और उस अदभुत सुन्दर रानी को पाने के लिए बेताब उसने तुरंत रानी की शर्त स्वीकार कर सन्देश भिजवा दिया |

उधर रानी ने अपने काका गोरा व भाई बादल के साथ रणनीति तैयार कर सात सौ डोलियाँ तैयार करवाई और इन डोलियों में हथियार बंद राजपूत वीर सैनिक बिठा दिए डोलियों को उठाने के लिए भी कहारों के स्थान पर छांटे हुए वीर सैनिको को कहारों के वेश में लगाया गया |
इस तरह पूरी तैयारी कर रानी अल्लाउद्दीन के शिविर में अपने पति को छुड़ाने हेतु चली उसकी डोली के साथ गोरा व बादल जैसे युद्ध कला में निपुण वीर चल रहे थे | अल्लाउद्दीन व उसके सैनिक रानी के काफिले को दूर से देख रहे थे |

सारी पालकियां अल्लाउदीन के शिविर के पास आकर रुकीं और उनमे से राजपूत वीर अपनी तलवारे सहित निकल कर यवन सेना पर अचानक टूट पड़े इस तरह अचानक हमले से अल्लाउद्दीन की सेना हक्की बक्की रह गयी और गोरा बादल ने तत्परता से रत्नसिंह को अल्लाउद्दीन की कैद से मुक्त कर सकुशल चितौड़ के दुर्ग में पहुंचा दिया |

इस हार से अल्लाउद्दीन बहुत लज्जित हुआ और उसने अब चितौड़ विजय करने के लिए ठान ली | आखिर उसके छ:माह से ज्यादा चले घेरे व युद्ध के कारण किले में खाद्य सामग्री अभाव हो गया तब राजपूत सैनिकों ने केसरिया बाना पहन कर जौहर और शाका करने का निश्चय किया |

जौहर के लिए गोमुख के उतर वाले मैदान में एक विशाल चिता का निर्माण किया गया | रानी पद्मिनी के नेतृत्व में १६००० राजपूत रमणियों ने गोमुख में स्नान कर अपने सम्बन्धियों को अन्तिम प्रणाम कर जौहर चिता में प्रवेश किया |

थोडी ही देर में देवदुर्लभ सोंदर्य अग्नि की लपटों में स्वाहा होकर कीर्ति कुंदन बन गया |

जौहर की ज्वाला की लपटों को देखकर अलाउद्दीन खिलजी भी हतप्रभ हो गया | महाराणा रतन सिंह के नेतृत्व में केसरिया बाना धारण कर ३०००० राजपूत सैनिक किले के द्वार खोल भूखे सिंहों की भांति खिलजी की सेना पर टूट पड़े भयंकर युद्ध हुआ गोरा और उसके भतीजे बादल ने अद्भुत पराक्रम दिखाया बादल की आयु उस वक्त सिर्फ़ बारह वर्ष की ही थी उसकी वीरता का एक गीतकार ने इस तरह वर्णन किया – बादल बारह बरस रो,लड़ियों लाखां साथ |

सारी दुनिया पेखियो,वो खांडा वै हाथ || इस प्रकार छह माह और सात दिन के खुनी संघर्ष के बाद 18 अप्रेल 1303 को विजय के बाद असीम उत्सुकता के साथ खिलजी ने चित्तोड़ दुर्ग में प्रवेश किया लेकिन उसे एक भी पुरूष,स्त्री या बालक जीवित नही मिला जो यह बता सके कि आख़िर विजय किसकी हुई और उसकी अधीनता स्वीकार कर सके |

उसके स्वागत के लिए बची तो सिर्फ़ जौहर की प्रज्वलित ज्वाला और क्षत-विक्षत लाशे और उन पर मंडराते गिद्ध और कौवे |

रत्नसिंह युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त हुए और रानी पद्मिनी राजपूत नारियों की कुल परम्परा मर्यादा और अपने कुल गौरव की रक्षार्थ जौहर की ज्वालाओं में जलकर स्वाहा हो गयी जिसकी कीर्ति गाथा आज भी अमर है और सदियों तक आने वाली पीढ़ी को गौरवपूर्ण आत्म बलिदान की प्रेरणा प्रदान करती रहेगी |

शेखावत या शेखावत सूर्यवंशी कछवाह

शेखावत या शेखावत सूर्यवंशी कछवाह राजपूत - सूर्य वंश - कछवाह - शाखा - शेखावत कछवाह शेखावत -  शेखा जी  के वंशज शेखावत कहलाते हैँ। शेखा जी ...