Friday, 13 October 2017

शेखावत या शेखावत सूर्यवंशी कछवाह

शेखावत या शेखावत सूर्यवंशी कछवाह
राजपूत - सूर्य वंश - कछवाह - शाखा - शेखावत कछवाह

शेखावत -  शेखा जी  के वंशज शेखावत कहलाते हैँ। शेखा जी को महाराव की उपाधि थी इसलिए महाराव शेखा जी के नाम से जानें जाते थे, महाराव  शेखा जी राव मोकल जी के पुत्र व बाला जी के पौत्र थे। महाराव शेखा जी के दादाजी आमेर के राजा उदयकरण जी के तिसरे पुत्र थे।
[दो शब्द  - कछवाहों और शेखावतों का पूरा इतिहास जानने से पहले यह भी जान ले कि कछवाहों की मूल रूप से केवल 35 ही शाखाये ही हैं, बाकि शेखावतों में हैं कुछ लोग अधूरे ज्ञान के कारण इनको मिलकर खिचड़ी बनाकर लिख देते है जिस के कारन जिज्ञासु भर्मीत हो जाता है और वो कछवाह और शेखावतों के बीच में जो थोड़ा बहुत जो फासला (अंतर) है उसको वो नहीं समझ पाता है। कछवाह बहुत ही विस्तारित एक सम्पूर्ण वंस है जबकि शेखावत कछवाहों कि एक शाखा है जो राजस्थान में ही प्रफुलित हुयी। 36 वीं शाखा से शेखावतों कि शाखा शुरू होकर आगे चलकर अनेक उपशाखाओं व खाँपों  में विभाजित होकर एक विशाल वट वृक्ष जाता है।]
महाराव शेखा जी के दादाजी आमेर के राजा उदयकरण जी के तिसरे पुत्र थे।
राव शेखा जी के पुत्र राव सूजा जी और जगमल जी ने सन् 1503 के लगभग बान्सूर प्रदेश पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। सूजा जी ने बसई को अपनी राजधानी बनाया और जगमाल जी हाजीपुर चले गए । सन् 1537 में सूजा जी का देहावसान हो गया और राव सूजा जी के पुत्र लूणकर्ण जी, रायसल जी, चाँदा जी और भरूँजी   बड़े प्रतापी और वीर हुए थे। शेखावटी के खेतडी, खण्डेला, सीकर, शाहपुरा आदि नगरोँ में लूणकर्ण और रायसल बसई में अब तक खण्डहर पड़ा हुआ है।
शेखावत कछवाहोँ का पीढी क्रम इस प्रकार है -:
शेखा जी - राव मोकल जी - बाला जी - उदयकरण जी - जुणसी जी (जुणसी, जानसी, जुणसीदेव जी, जसीदेव) - जी - कुन्तलदेव जी – किलहन देवजी (कील्हणदेव,खिलन्देव) - राज देवजी - राव बयालजी (बालोजी) - मलैसी देव - पुजना देव (पाजून, पज्जूणा) – जान्ददेव - हुन देव - कांकल देव - दुलहराय जी (ढोलाराय) - सोढ देव (सोरा सिंह) - इश्वरदास (ईशदेव जी)
ख्यात अनुसार शेखावत कछवाहोँ का पीढी क्रम ईस प्रकार है –:

01 - भगवान श्री राम - भगवान श्री राम के बाद कछवाहा (कछवाह) क्षत्रिय राजपूत राजवंश का इतिहास इस प्रकार भगवान श्री राम का जन्म ब्रह्माजी की 67वीँ पिढी मेँ और ब्रह्माजी की 68वीँ पिढी मेँ लव व कुश का जन्म हुआ। भगवान श्री राम के दो पुत्र थे –
              01 - लव
              02 - कुश
रामायण कालीन महर्षि वाल्मिकी की महान धरा एवं माता सीता के पुत्र लव-कुश का जन्म स्थल कहे जाने वाला धार्मिक स्थल तुरतुरिया है। - लव और कुश राम तथा सीता के जुड़वां बेटे थे। जब राम ने वानप्रस्थ लेने का निश्चय कर भरत का राज्याभिषेक करना चाहा तो भरत नहीं माने। अत: दक्षिण कोसल प्रदेश (छत्तीसगढ़) में कुश और उत्तर कोसल में लव का अभिषेक किया गया।
- राम के काल में भी कोशल राज्य उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल में विभाजित था। कालिदास के रघुवंश अनुसार राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज्य दिया था। शरावती को श्रावस्ती मानें तो निश्चय ही लव का राज्य उत्तर भारत में था और कुश का राज्य दक्षिण कोसल में। कुश की राजधानी कुशावती आज के बिलासपुर जिले में थी। कोसला को राम की माता कौशल्या की जन्म भूमि माना जाता है।- रघुवंश के अनुसार कुश को अयोध्या जाने के लिए विंध्याचल को पार करना पड़ता था इससे भी सिद्ध होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोसल में ही था। राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार लव ने लाहौर की स्थापना की थी, जो वर्तमान में पाकिस्तान स्थित शहर लाहौर है। यहां के एक किले में लव का एक मंदिर भी बना हुआ है। लवपुरी को बाद में लौहपुरी कहा जाने लगा। दक्षिण-पूर्व एशियाई देश लाओस, थाई नगर लोबपुरी, दोनों ही उनके नाम पर रखे गए स्थान हैं। राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा ।
02 – कुश - भगवान श्री राम के पुत्र लव, कुश हुये।
03 - अतिथि - कुश के पुत्र अतिथि हुये।
04 - वीरसेन (निषध) - वीरसेन जो कि निषध देश के एक राजा थे। भारशिव राजाओं में वीरसेन सबसे प्रसिद्ध राजा था। कुषाणों को परास्त करके अश्वमेध यज्ञों का सम्पादन उसी ने किया था। ध्रुवसंधि की 2 रानियाँ थीं। पहली पत्नी महारानी मनोरमा कलिंग के राजा वीरसेन की पुत्री थी । वीरसेन (निषध) के एक पुत्री व दो पुत्र हुए थे:-          
             01- मदनसेन (मदनादित्य) – (निषध देश के राजा
वीरसेन का पुत्र) सुकेत के 22 वेँ शासक राजा मदनसेन ने बल्ह के लोहारा नामक स्थान मे सुकेत की राजधानी स्थापित की। राजा मदनसेन के पुत्र हुए कमसेन जिनके नाम पर कामाख्या नगरी का नाम कामावती पुरी रखा गया।
             02 - राजा नल - (निषध देश के राजा वीरसेन का पुत्र) निषध देश पुराणानुसार एक देश का प्राचीन नाम जो विन्ध्याचल पर्वत पर स्थित था।
             03 - मनोरमा (पुत्री) - अयोध्या में भगवान राम से कुछ पीढ़ियों बाद ध्रुवसंधि नामक राजा हुए । उनकी दो स्त्रियां थीं । पट्टमहिषी थी कलिंगराज वीरसेन की पुत्री मनोरमा और छोटी रानी थी उज्जयिनी नरेश युधाजित की पुत्री लीलावती । मनोरमा के पुत्र हुए सुदर्शन और लीलावती के शत्रुजित ।माठर वंश के बाद कलिंग में नल वंश का शासन आरम्भ हो गया था। माठर वंश के बाद500 ई० में नल वंश का शासन आरम्भ हो गया। वर्तमान उड़ीसा राज्य को प्राचीन काल से मध्यकाल तक ओडिशा राज्य , कलिंग, उत्कल, उत्करात, ओड्र, ओद्र, ओड्रदेश, ओड, ओड्रराष्ट्र, त्रिकलिंग, दक्षिण कोशल, कंगोद, तोषाली, छेदि तथा मत्स आदि भी नामों से जाना जाता था। नल वंश के दौरान भगवान विष्णु को अधिक पूजा जाता था इसलिए नल वंश के राजा व विष्णुपूजक स्कन्दवर्मन ने ओडिशा में पोडागोड़ा स्थान पर विष्णुविहार का निर्माण करवाया। नल वंश के बाद विग्रह वंश, मुदगल वंश, शैलोद्भव वंश और भौमकर वंश ने कलिंग पर राज्य किया।
05 - राजा नल - (राजा वीरसेन का पुत्र राजा नल) निषध देश के राजा वीरसेन के पुत्र, राजा नल का विवाह विदर्भ देश के राजा भीमसेन की पुत्री दमयंती के साथ हुआ था। नल-दमयंती - विदर्भ देश के राजा भीम की पुत्री दमयंती और निषध के राजा वीरसेन के पुत्र नल राजा नल स्वयं इक्ष्वाकु वंशीय थे। महाकांतार (प्राचीन बस्तर) जिसे मौर्य काल में स्वतंत्र आटविक जनपद क्षेत्र कहा गया इसे समकालीन कतिपय ग्रंथों में महावन भी उल्लेखित किया गया है। महाकांतार (प्राचीन बस्तर) क्षेत्र में अनेक नाम नल से जुडे हुए हैं जैसे - नलमपल्ली, नलगोंडा, नलवाड़, नलपावण्ड, नड़पल्ली, नीलवाया, नेलाकांकेर, नेलचेर, नेलसागर आदि।महाकांतार (प्राचीन बस्तर) क्षेत्र पर नलवंश के राजा व्याघ्रराज (350-400 ई.) की सत्ता का उल्लेख समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशास्ति से मिलता है। व्याघ्रराज के बाद, व्याघ्रराज के पुत्र वाराहराज (400-440 ई.) महाकांतार क्षेत्र के राजा हुए। वाराहराज का शासनकाल वाकाटकों से जूझता हुआ ही गुजरा। राजा नरेन्द्र सेन ने उन्हें अपनी तलवार को म्यान में रखने के कम ही मौके दिये। वाकाटकों ने इसी दौरान नलों पर एक बड़ी विजय हासिल करते हुए महाकांतार का कुछ क्षेत्र अपने अधिकार में ले लिया था। वाराहराज के बाद, वाराहराज के पुत्र भवदत्त वर्मन (400-440 ई.) महाकांतार क्षेत्र के राजा हुए। भवदत्त वर्मन के देहावसान के बाद के पश्चात उसका पुत्र अर्थपति भट्टारक (460-475 ई.) राजसिंहासन पर बैठे। अर्थपति की मृत्यु के पश्चात नलों को कडे संघर्ष से गुजरना पडा जिसकी कमान संभाली उनके भाई स्कंदवर्मन (475-500 ई.) नें जिसे विरासत में सियासत प्राप्त हुई थी। इस समय तक नलों की स्थिति क्षीण होने लगी थी जिसका लाभ उठाते हुए वाकाटक नरेश नरेन्द्रसेन नें पुन: महाकांतार क्षेत्र के बडे हिस्सों पर पाँव जमा लिये। नरेन्द्र सेन के पश्चात उसके पुत्र पृथ्वीषेण द्वितीय (460-480 ई.) नें भी नलों के साथ संघर्ष जारी रखा। अर्थपति भटटारक को नन्दिवर्धन छोडना पडा तथा वह नलों की पुरानी राजधानी पुष्करी लौट आया। स्कंदवर्मन ने शक्ति संचय किया तथा तत्कालीन वाकाटक शासक पृथ्वीषेण द्वितीय को परास्त कर नल शासन में पुन: प्राण प्रतिष्ठा की। स्कंदवर्मन ने नष्ट पुष्करी नगर को पुन: बसाया अल्पकाल में ही जो शक्ति व सामर्थ स्कन्दवर्मन नें एकत्रित कर लिया था उसने वाकाटकों के अस्तित्व को ही लगभग मिटा कर रख दिया । के बाद नल शासन व्यवस्था के आधीन कई माण्डलिक राजा थे। उनके पुत्र पृथ्वीव्याघ्र (740-765 ई.) नें राज्य विस्तार करते हुए नेल्लोर क्षेत्र के तटीय क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। यह उल्लेख मिलता है कि उन्होंनें अपने समय में अश्वमेध यज्ञ भी किया। पृथ्वीव्याघ्र के पश्चात के शासक कौन थे इस पर अभी इतिहास का मौन नहीं टूट सका है। नल-दम्यंति के पुत्र-पुत्री इन्द्रसेना व इन्द्रसेन थे।
ब्रह्माजी की 71वीँ पिढी मेँ जन्में राजा नल से इतिहास में प्रसिद्ध क्षत्रिय सूर्यवंशी राजपूतों की एक अलग शाखा चली जो कछवाह के नाम से विख्यात है ।
06– ढोला - राजा नल-दमयंती का पुत्र ढोला जिसे इतिहास में साल्ह्कुमार के नाम से भी जाना जाता है का विवाह राजस्थान के जांगलू राज्य के पूंगल नामक ठिकाने की राजकुमारी मारवणी से हुआ था। जो राजस्थान के साहित्य में ढोला-मारू के नाम से प्रख्यात प्रेमगाथाओं के नायक है ।
07 – लक्ष्मण - ढोला के लक्ष्मण नामक पुत्र हुआ।-
08 - भानु - लक्ष्मण के भानु नामक पुत्र हुआ।
09 – बज्रदामा - भानु के बज्रदामा नामक पुत्र हुआ, भानु के पुत्र परम प्रतापी महाराजा धिराज बज्र्दामा हुवा जिस ने खोई हुई कछवाह राज्यलक्ष्मी का पुनः उद्धारकर ग्वालियर दुर्ग प्रतिहारों से पुनः जित लिया। 
10 - मंगल राज - बज्रदामा के मंगल राज नामक पुत्र हुआ। बज्र्दामा के पुत्र मंगल राज हुवा जिसने पंजाब के मैदान में महमूद गजनवी के विरुद्ध उतरी भारत के राजाओं के संघ के साथ युद्ध कर अपनी वीरता प्रदर्शित की थी। मंगल राज के मंगल राज के 2 पुत्र हुए:-
             01 - किर्तिराज (बड़ा पुत्र) - किर्तिराज को ग्वालियर का राज्य मिला था।
             02 - सुमित्र (छोटा पुत्र) - सुमित्र को नरवर का राज्य मिला था। नरवार किला, शिवपुरी के बाहरी इलाके में शहर से 42 किमी. की दूरी पर स्थित है जो काली नदी के पूर्व में स्थित है। नरवर शहर का ऐतिहासिक महत्व भी है और इसे 12 वीं सदी तक नालापुरा के नाम से जाना जाता था। इस महल का नाम राजा नल के नाम पर रखा गया है जिनके और दमयंती की प्रेमगाथाएं महाकाव्य महाभारत में पढ़ने को मिलती हैं। इस नरवर राज्य को ‘निषाद राज्य भी कहते थे, जहां राजा वीरसेन का शासन था। उनके ही पुत्र का नाम राजा नल था। राजा नल का विवाह दमयंती से हुआ था। बाद में चौपड़ के खेल में राजा नल ने अपनी सत्ता को ही दांव पर लगा दिया था और सब कुछ हार गए। इसके बाद उन्हें अपना राज्य छोड़कर निषाद देश से जाना पड़ा था। 12वीं शताब्दी के बाद नरवर पर क्रमश: कछवाहा, परिहार और तोमर राजपूतों का अधिकार रहा, जिसके बाद 16वीं शताब्दी में मुग़लों ने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया। मानसिंह तोमर (1486-1516 ई.) और मृगनयनी की प्रसिद्ध प्रेम कथा से नरवर का सम्बन्ध बताया जाता है।

11 - सुमित्र - मंगल राज का छोटा पुत्र सुमित्र था।
12 - ईशदेव जी - सुमित्र के ईशदेव नामक पुत्र हुआ। इश्वरदास (ईशदेव जी) 966 – 1006 ग्वालियर (मध्य प्रदेश) के शासक थे। 
13 - सोढदेव - इश्वरदास (ईशदेव जी) के सोढ देव (सोरा सिंह) नामक पुत्र हुआ
14 - दुलहराय जी (ढोलाराय) - सोढदेव जी के दुलहराय जी (ढोलाराय) नामक पुत्र हुआ । दुलहराय जी (ढोलाराय) (1006-36) आमेर (जयपुर) के शासक थे। दुलहराय जी (ढोलाराय) के 3 पुत्र हुये:-
                 01 - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - (1036-38) आमेर (जयपुर) के शासक थे।
                 02 - डेलण जी
                 03 - वीकलदेव जी
15 - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - (1036-38) आमेर (जयपुर) के शासक थे। कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) के पांच पुत्र हुए:-
                 01 - अलघराय जी
                 02 - गेलन जी
                 03 - रालण जी
                 04 - डेलण जी
                 05 - हुन देव 
16 - हुन देव - कांकल देव (काँखल देव) के हुन देव नामक पुत्र हुआ। हुन देव (1038-53) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
17 - जान्ददेव - हुन देव के जान्ददेव नामक पुत्र हुआ। जान्ददेव (1053 – 1070) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
18 – पंञ्जावन - जान्ददेव के पंञ्जावन (पुजना देव, पाजून, पज्जूणा) नामक पुत्र हुआ।पंञ्जावन (पुजना देव,पाजून, पज्जूणा) (1070 – 1084) आमेर (जयपुर) के शासक थे।
19 - मलैसी देव -  राजा मलैसिंह देव  पंञ्जावन (पुंजदेव, पुजना देव, पाजून, पज्जूणा) का पुत्र था, तथा मलैसिंह दौसा का सातवाँ राजा था  मलैसी देव दौसा के बाद राजा मलैसिंह देव 1084 से 1146  तक आमेर (जयपुर) के शासक थे। भारतीय ईतीहास में मलैसी को मलैसी, मलैसीजी, मलैसिंहजी आदी नामों से भी जाना एंव पहचाना जाता है, मगर इन का असली नाम मलैसी देव था। जैसा कि सभी को मालुम है सुंन्दरता के वंश में होकर (मलैसीजी मलैसिंहजी) ने बहुतसी शादीयाँ करी थी। जिन में राजपूत खानदान से बाहर अन्य खानदान एंव अन्य जातीयों में करी थी इन सब की जानकारी बही भाटों की बही एंव समाज के बुजुर्गो की जुबान तो खुलकर बताती है मगर इतिहास के पन्ने इस विषय पर मौन हैं।
मलैसी देव के बहुत से पुत्र थे मगर हमें इनमें से सात का तो हर जगह ब्योरा मिल जाता है बाकी पर इतीहास अपनी चुपी नहीं तोड़ता है । मगर हम जागा और जातीगत ईतीहास लिखने वाले बही-भीटों की बही के प्रमाण एंव समाज के बुजुर्गो की जुबान पर जायें तो पता चलता है राजा मलैसी देव कि सन्तानोँ मेँ शुद् रजपुती खुन दो पुत्रोँ मेँ था राव बयालजी (बालोजी) व जैतलजी में। राव बयालजी (बालोजी) व जैतलजी के अलावा बकी पाँच ने कसी कारण वंश दूसरी जाती की लड़की से शादी की जीससे एक अलग- अलग जातीयाँ निकली। मलैसी देव ने राजपूत खानदान से बाहर अन्य खानदान एंव अन्य जातीयों में शादीयाँ करी थी इन सब अन्य जातीयों से पुत्र -
              01 - तोलाजी - टाक दर्जी छींपा
              02 - बाघाजी - रावत बनिया
              03 - भाण जी - डाई गुजर
              04 - नरसी जी - निठारवाल जाट
              05 - रतना जी - सोली सुनार,आमेरा नाई
उपरोंक्त ये सभी पाँचो पुत्र अपने व्यवसाय में लग गये जिनकी आज राजपूतों से  एक अलग जाती बनगयी है
              06 - जैतल जी (जीतल जी) - जैतल जी (जीतल जी) (1146 – 1179) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
              07 - राव बयालदेव
20 - राव बयालदेव - राजा मलैसिंह देव के पुत्र  राव बयालदेव । 
21 - राज देवजी - राव बयालदेव के पुत्र राज देवजी। राज देवजी (1179 – 1216) आमेर (जयपुर) के शासक थे। राजा राव बयालजी (बालोजी) का पुत्र राजा देव जी दौसा का नौँवा राजा बना जिसका कार्यकाल 1179-1216 तक। राजा देव जी के ग्यारह पुत्र थे -:
              01 - बीजलदेव जी
              02 - किलहनदेव जी
              03 - साँवतसिँह जी
              05 - सिहा जी
              06 - बिकसी [ बिकासिँह जी, बिकसिँह जी विक्रमसी ]
              07 - पाला जी (पिला जी)
              08 - भोजराज जी 
              09 - राजघरजी [राढरजी]
              10 - दशरथ जी
              11 - राजा कुन्तलदेव जी
22 - कुन्तलदेव जी -  कुन्तलदेव जी 1276 से 1317 तक  आमेर (जयपुर) के शासक थे। राजा कुन्तलदेव जी के ग्यारह पुत्र थे -:
       01 - बधावा जी
              02 - हमीर जी (हम्मीर देव जी)
              03 - नापा जी
              04 - मेहपा जी 
              05 - सरवन जी
              06 - ट्यूनगया जी
              07 - सूजा जी
              08 - भडासी जी
              09 - जीतमल जी
              10 - खींवराज जी
              11 - जोणसी
23 - जोणसी - राजा जोणसी कुन्तलदेव जी के पुत्र थे, इन को को जुणसी जी, जुणसी, जानसी, जुणसी देव जी, जसीदेव आदि कई नामों से पुकारा जाता था, आमेर के 13 वें शासक राजा जुणसी देव के चार पुत्र थे -:
              01 - जसकरण जी
              02 - उदयकरण जी
              03 - कुम्भा जी
              04 - सिंघा जी
24 - उदयकरण जी - उदयकरण जी [उदयकर्ण] - उदयकरण जी राजा जुणसी जी के दूसरे पुत्र थे। राजा उदयकरणजी आमेर के तीसरे राजा थे जिनका शासनकाल 1366 से 1388 में रहा है। राजा उदयकरणजी की म्रत्यु 1388 में हुयी थी । उदयकरजी की म्रत्यु 1388 में हुयी थी। उदयकरजी के आठ पुत्र थे :-
          01 - राव नारोसिंह [राजा नरसिंह, नाहरसिंह देवजी]
          02 - राव बरसिंह
          03 - राव बालाजी
          04 - राव शिवब्रह्म
          05 - राव पातालजी
          06 - राव पीपाजी
          07 - राव पीथलजी
          08 - राव नापाजी (राजाउदयकरणजी के आठवें पुत्र) 
25 - बाला जी - बाला जी आमेर के राजा उदयकरण जी के तिसरे पुत्र थे। 
26 - राव मोकल जी - राव मोकल जी बाला जी के पुत्र थे। 
27 - महाराव शेखा जी - महाराव  शेखा जी राव मोकल जी के पुत्र व बाला जी के पौत्र थे।
शेखा जी  के वंशज शेखावत कहलाते हैँ। शेखा जी को महाराव की उपाधि थी इसलिए महाराव शेखा जी के नाम से जानें जाते थे, महाराव  शेखा जी राव मोकल जी के पुत्र व बाला जी के पौत्र थे। महाराव शेखा जी के दादाजी आमेर के राजा उदयकरण जी के तिसरे पुत्र थे। 


शेखावत वंश की शाखाएँ -:
शेखावत सूर्यवंशी कछवाह क्षत्रिय वंश की एक शाखा है
शेखावत वंश परिचय-:
सम्पूर्ण कछवाह बिरादरी में सबसे प्रमुख खांप शेखावत है। 
शेखावत सूर्यवंशी कछवाह क्षत्रिय वंश की एक शाखा है देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर, शाहपुरा, खंडेला, सीकर, खेतडी, बिसाऊ, सुरजगढ़, नवलगढ़, मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता, खुड, खाचरियाबास, दूंद्लोद, अलसीसर, मलसिसर, रानोली आदि प्रभाव शाली ठिकाने शेखावतों के अधिकार में थे जो शेखावाटी नाम से प्रशिद्ध है । शेखावाटी के ठिकाने और जागीर :-
Alsisar अलसीसर
Khatu खाटू
Arooka अरूका
Khayali ख्याली
Bissau बिस्साऊ
Khetri खेतड़ी
Chowkari चोव्करी
Khood खूड
Danta दांता
Mahansar महनसर
Dujod दुजोद
Malsisar मलसीसर
Dundlod डूंडलोद
Mandawa मंडावा
Gangiasar गान्ग्यासर
Mandrella मंडरेला
Heerwa & Sigra हीरवा सिगरा
Mukangarh मुकंगढ़
Jahota जाहोता
Nawalgarh नवलगढ़
Kasli कासली
Shahpura शाहपुरा
Khachariawas खाचरियावास
Sikar सीकर
Khandela खंडेला


वर्तमान में शेखावाटी की भौगोलिक सीमाएं सीकर और झुंझुनू दो जिलों तक ही सीमित है । संयोगिता हरण के समय प्रथ्विराज का पीछा करती कन्नोज की विशाल सेना को रोकते हुए पज्वन राय जी ने वीर गति प्राप्त की थी आमेर नरेश पज्वन राय जी के बाद लगभग दो सो वर्षों बाद उनके वंशजों में वि.सं. 1423 में राजा उदयकरण आमेर के राजा बने, राजा उदयकरण के पुत्रो से कछवाहों की उदयकरण जी के तीसरे पुत्र बालाजी जिन्हें बरवाडा की 12 गावों की जागीर मिली शेखावतों के आदि पुरुष थे ।
बालाजी के पुत्र मोकलजी हुए और मोकलजी के पुत्र महान योधा शेखावाटी व शेखावत वंश के प्रवर्तक महाराव शेखा का जनम वि.सं. 1490 में हुवा । वि. सं. 1502 में मोकलजी के निधन के बाद राव शेखाजी बरवाडा व नान के 24 गावों के स्वामी बने। महाराव शेखा खुद 1471 में स्वतंत्र घोषित कर दिया और उसके वंश के लिए एक अलग रियासत की स्थापना की।

राव शेखाजी ने अपने साहस वीरता व सेनिक संगठन से अपने आस पास के गावों पर धावे मारकर अपने छोटे से राज्य को 360 गावों के राज्य में बदल दिया । राव शेखाजी ने नान के पास अमरसर बसा कर उसे अपनी राजधानी बनाया और शिखर गढ़ का निर्माण किया राव शेखाजी के वंशज उनके नाम पर शेखावत कहलाये शेखावत वंश की शाखाएँ, शेखा जी पुत्रो व वंशजो के कई शाखाओं का प्रदुर्भाव हुआ जो निम्न है :-
महाराव शेखाजी के बेटों से शेखावतों की शाखाएँ-
महाराव शेखा जी के बारह बेटे थे। जिन में से तीन बेटे भरतजी, तिलोकजी [त्रिलोकजी],प्रतापजी निसंतान थे। बाकि नौ बेटों से पांच शाखाएँ चली जो इस प्रकार है -:
01 - टकनेत शेखावत – 
दुर्गाजी के वंशज टकनेत शेखावत कहलाते हैं। 
दुर्गाजी - शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
02 - रतनावत शेखावत –
रतनाजी के वंशज रतनावत शेखावत कहलाते हैं।
रतनाजी – शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
[ध्यान रहे … यह कछवाहोँ की उप शाखा रतनावत नरुका, रतनावत शेखावत खांप से बिलकुल अलग है।] 
रतनावत कछवाह  व रतनावत शेखावत में भेद या अन्तर?
कुछ लोग रतनावत कछवाह व रतनावत शेखावत को एक ही समझ लेतें हैं क्यों की दोनों में पीढ़ी व वसाजों का नाम संयोग से एक जैसा ही है जिसमे भेद इस प्रकार है - 
उदयकरण जी [उदयकर्ण] - उदयकरण जी राजा जुणसी जी के दूसरे पुत्र थे। राजा उदयकरणजी आमेर के तीसरे राजा थे जिनका शासनकाल 1366 से 1388 में रहा है। राजा उदयकरणजी की म्रत्यु 1388 में हुयी थी । उदयकरजी की म्रत्यु 1388 में हुयी थी। उदयकरजी के आठ पुत्र थे :-
          01 - राव नारोसिंह [राजा नरसिंह, नाहरसिंह देवजी]
          02 - राव बरसिंह - 
                        *मेराज जी (मेहराज) 
                                     *नरुजी - दासासिंह (दासा) -
                                               *रतनसिंह (रतनजी) 
[रतनसिंह (रतन जी) के वंसज रतनावत कछवाह कहतें हैं, जो नरुका  
 कछवाह की ही उप शाखा है। ]
          03 - राव बालाजी - 
                          *राव मोकलजी 
                                   *शेखाजी   
                                             *रतनाजी [रतनाजी के वंसज रतनावत शेखावत] 
          04 - राव शिवब्रह्म
          05 - राव पातालजी
          06 - राव पीपाजी
          07 - राव पीथलजी
          08 - राव नापाजी (राजाउदयकरणजी के आठवें पुत्र) 
रतनावत शेखावत [रतनाजी के वंशज रतनावत शेखावत कहलाते हैं।
रतनाजी – शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी ]


रतनावत कछवाह [  रतनसिंह (रतन जी) के वंशज रतनावत कछवाह कहलाते हैं।]
रतनसिंह (रतन जी) - दासासिंह (दासा) - नरु जी - मेराज जी (मेहराज) - बरसिँह जी (बरसिँग देवजी) - उदयकरण जी ]  
03 - मिलकपुरिया शेखावत - 
आभाजी, अचलाजी,पूरणजी, इन तीन बेटों के वंशज मिलकपुरिया शेखावत कहलाते हैं। मिलकपुर गांव गाँव में रहने से इनका यह नाम पड़ा है।
आभाजी – शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
अचलाजी- शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
पूरणजी – शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
04 - खेजडोल्या [खेज्डोलिया] शेखावत – 
रिड़ मलजी [रिदमल जी] कुम्भा जी व भारमलजी इन तीन बेटों के वंशज खेजडोल्या [खेज्डोलिया] शेखावत कहलाते हैं। खेजड़ोली गाँव में रहने से इनका यह नाम पड़ा है।
रिड़मलजी [रिदमल जी] - शेखाजी- राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
कुम्भा जी – शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
भारमलजी – शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
05 - रायमलोत शेखावत [रायमल जी के शेखावत] - 
राव रायमल जी - राव रायमल जी के वंशज रायमलोत शेखावत [रायमल जी के शेखावत] कहलाते हैं। रायमलोत शेखावत [रायमल जी शेखावत] महाराव शेखाजी के सब से छोटे पुत्र राव रायमल जी थे।
राव रायमलजी - शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
महाराव शेखाजी के बेटों के बेटों [पोतों] के वंसजों से शेखावतों की शाखाएँ –:
06 - संतालपोता शेखावत – 
संतालजी – कुम्भाजी – शेखाजी 
कुम्भा जी के पुत्र संताल जी के बेटों के वंशज सतालपोता शेखावत कहलाते हैं। 
कुम्भा जी महाराव शेखाजी के पुत्र थे। संताल जी महाराव शेखाजी के पोते थे।
[कुम्भा जी व उनके पुत्र संतालजी और संतालजी के बेटे तो खेजडोल्या [खेज्डोलिया] शेखावत थे मगर संतालजी के बेटो के बेटे [पोतों]से एक अलग शाखा चली जिसे संतालपोता शेखावत कहलाते हैं।]
07 - बाघावत शेखावत – 
बाघाजी – भारमलजी – शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
भारमलजी के बड़े पुत्र बाघाजी के वंशज बाघावत शेखावत कहलाते हैं। 
भारमलजी महाराव शेखाजी के पुत्र थे। बाघाजी महाराव शेखाजी के पोते थे।
[भारमलजी के वंशज तो खेजडोल्या [खेज्डोलिया] शेखावत कहलाते हैं। 
थे मगर भारमलजी के पुत्र बाघाजी से एक अलग शाखा चली जिसे बाघावत शेखावत कहलाते हैं।]
08 - सुजावत शेखावत – 
सूजा जी [सूरजमल जी] - राव रायमल जी - शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
महाराव शेखाजी के सब से छोटे पुत्र राव रायमल जी थे।राव रायमल जी का पुत्र था सूजा जी [सूरजमल जी] सूजा जी के वंशज सुजावत शेखावत कहलाते हैं।
महाराव शेखाजी के पड़ पोतों के वंसजों से शेखावतों की शाखाएँ –
महाराव शेखाजी के सब से छोटे पुत्र राव रायमल जी थे। राव रायमल जी का पुत्र था सूजा जी के छह पुत्र थे। इन छह पुत्रों से छह शाखाओं का निकास हुवा जो इस प्रकार है- 
लूणकरणजी, रायसलजी, गोपाल, भरूँजी, चांदाजी, रामजी, 
09 लुणकरण जी का शेखावत –
लुणकरणजी - राव सुजाजी – राव रायमलजी - शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
लुणकरणजी के वंसज लुणकरण जी का शेखावत या लुनावत शेखावत कहलाते हैं। लुणकरण जी अमरासर के राव सुजा जी के पुत्र थे। लुणकरणजी राव रायमलजी के पोते तथा महाराव शेखाजी के पड़ पोते थे। 
10 - रायसलोत शेखावत [रायसल जी का शेखावत]
रायसलजी - राव सुजाजी – राव रायमलजी - शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
राजा रायसलजी दरबारी के वंशज रायसलोत शेखावत कहलाते हैं। रायसलजी अमरासर के राव सुजाजी के पुत्र थे।
रायसलजी महाराव शेखाजी के सब से छोटे पुत्र राव रायमल जी के पोते थे। तथा महाराव शेखाजी के पड़ पोते थे। 
11 - गोपाल जी का शेखावत –
गोपालजी - - राव सुजाजी – राव रायमलजी - शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
सूजा जी [सूरजमल जी] के पुत्र गोपालजी के वंशज गोपाल जी का शेखावत शेखावत कहलाये हैं।
झुञ्झुणु जिले में गोपाल जी का शेखावत गाँव सेंसवास, जांटवली, फूसखानी गाँव सेंसवास, 
गोपालजी अमरासर के राव सुजाजी के पुत्र व राव रायमलजी के पोते थे, तथा महाराव शेखाजी के पड़ पोते थे।
 12 - भरूँजी का शेखावत –
भरूँजी - राव सुजाजी -– राव रायमलजी - शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
भरूँजी के वंशज भरूँजी का शेखावत कहलाते हैं। भरूँजी अमरासर के राव सुजाजी के पुत्र व राव रायमलजी के पोते थे, तथा महाराव शेखाजी के पड़ पोते थे। 
13 - चांदाजी का शेखावत - [चांदावत शेखावत] -
चांदाजी - राव सुजाजी -– राव रायमलजी - शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
चांदाजी के वंशज चांदाजी का शेखावत - [चांदावत शेखावत] कहलाते हैं। चांदाजी अमरासर के राव सुजाजी के पुत्र व राव रायमलजी के पोते थे, तथा महाराव शेखाजी के पड़ पोते थे। 
14 - रामजी का शेखावत -
रामजी - राव सुजाजी -– राव रायमलजी - शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
रामजी के वंशज रामजी का शेखावत कहलाते हैं। रामजी अमरासर के राव सुजाजी के पुत्र व राव रायमलजी के पोते थे, तथा महाराव शेखाजी के पड़ पोते थे। 
रायसलजी अमरसर के शासक राव सूजा जी [सूरजमल जी] के द्वितीय पुत्र थे। उनका जन्म राठौड़ रानी रतन कँवर के गर्भ से हुआ था। राजारायसल (दरबारी) खण्डेला के प्रथम शेखावत राजा थे। उन्होंने ई.सं॰1584से1614 तक शासन किया। राजा रायसलजी की पांच शादियां हुयी थी – 
राजा रायसलजी की पांच शादियां हुयी थी, जिनसे सात पुत्रों का जन्म हुवा, इन सात पुत्रों से जो अलग सात शाखाएं चली वो इस प्रकार है – 
राजा रायसल जी की पहली शादी गांव देवती के बड़गुजर राजपूत लखधीर सिंह की पुत्री अमरतीकँवर के साथ हुयी थी । राजा रायसल जी की रानी अमरतीकँवर के गर्भ से तीन पुत्रों का जन्म हुवा इन तीन पुत्रों से तीन शाखाएं चली -
लाडाजी-से लाडखानी शेखावत।
ताजाजी-से ताजखानी शेखावत।
परसरामजी-से परसरामजी का शेखावत ।
15 - लाडखानी शेखावत –लाडाजी - रायसल जी - राव सुजाजी -– राव रायमलजी - शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
राजा रायसल जी के पुत्र लाडाजी के वंशज लाडखानी शेखावत शेखावत कहलाते हैं।
लाडाजी रायसल जी के पुत्र व राव सुजाजी के पोते थे, तथा राव रायमलजी के पड़ पोते थे। 
लाडाजी को अकबर ने लाडखान कह कर पुकारता था जिससे इन का उप नाम लाडखान टिक गया इसलिए लाडाजी के वंशज लाडखानी शेखावत कहलाये । राजा रायसलजी की पहली शादी गांव देवती के बड़गुजर राजपूत लखधीर सिंह की पुत्री अमरतीकँवर के साथ हुयी थी । राजा रायसल जी की पहली शादी, रानी अमरतीकँवर के गर्भ से तीन पुत्रों का जन्म हुवा था लाडाजी, ताजाजी, परसरामजी,
इन ही लाडाजी के वंशज लाडखानी शेखावत शेखावत कहलाते हैं। 
लाड़ा जी, रायसल जी के जेष्ट पुत्र थे किन्तु इन को खंडेला की राजगद्दी नही मिली। इनका नाम लाल सिंह था। सम्राट अकबर इन्हें प्यार से लाडखां कहता था। इनके वंशज लाडखानी शेखावत है। खाचरियावास, रामगढ़ , लामियां, बाज्यवास, धीगपुरा, लालासरी, हुडिल ,तारपुरा ,खुडी निराधणु, रोरु, खाटू ,सांवालोदा, लाडसर लुमास डाबड़ी ,दिणवा,हेमतसर आदि लाडखानियो के गाँव है।
16 - ताजखानी शेखावत -
ताजाजी - रायसल जी - राव सुजाजी -– राव रायमलजी - शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी - उदयकरणजी 
राजा रायसल जी के पुत्र ताजाजी के वंशज ताजखानी शेखावत शेखावत कहलाते हैं।
राजा रायसलजी की पहली शादी गांव देवती के बड़गुजर राजपूत लखधीर सिंह की पुत्री अमरतीकँवर के साथ हुयी थी । राजा रायसल जी की पहली शादी, रानी अमरतीकँवर के गर्भ से तीन पुत्रों का जन्म हुवा था लाडाजी, ताजाजी, परसरामजी,
इन ही ताजाजी के वंशज ताजखानी शेखावत कहलाते हैं।
17 – परसरामजी का शेखावत -
परसरामजी - रायसल जी - राव सुजाजी -– राव रायमलजी - शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी – उदयकरणजी 
राजा रायसल जी के पुत्र परसरामजी के वंशज परसरामजी का शेखावत कहलाते हैं। 
राजा रायसलजी की पहली शादी गांव देवती के बड़गुजर राजपूत लखधीर सिंह की पुत्री अमरतीकँवर के साथ हुयी थी । राजा रायसल जी की पहली शादी, रानी अमरतीकँवर के गर्भ से तीन पुत्रों का जन्म हुवा था लाडाजी, ताजाजी, परसरामजी,
इन ही परसरामजी के वंशज परसरामजी का शेखावत कहलाते हैं।
18 - त्रिमलजी [तिरमलजी] का शेखावत -
त्रिमलजी [तिरमलजी] - रायसल जी - राव सुजाजी -– राव रायमलजी - शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी – उदयकरणजी 
राजा रायसल जी की दूसरी शादी गांव मेड़ता के स्वामी इतिहास प्रसिद्ध वीर जयमल राठौड़ के पुत्र बिठ्ठलदास मेड़तिया की पुत्री [रानी "मेड़तणी जी"]के साथ हुयी थी । राजा रायसल जी की रानी "मेड़तणी जी" के गर्भ से दो पुत्रों का जन्म हुवा त्रिमलजी [तिरमलजी],गिरधरदासजी इन ही त्रिमलजी [तिरमलजी], के वंशज राव जी का शेखावत कहलाये क्यों की तिरमलजी को रावजी की उपाधि थी। इन हीगिरधरदास के वंशज गिरधरदास जी का शेखावत कहलाये। तिरमल जी इन के वंशज राव जी का शेखावत कहलाते है। इनके सीकर व कासली दो बड़े ठिकाने थे। शिव सिंह जी ने फतेहपुर कायमखानी मुसलमानों से जीत कर सीकर राज्य में मिला लिया। टाड़ास, फागलवा ,बिजासी ,खाखोली ,पालावास ,तिडोकी ,जुलियासर ,झलमल ,दुजोद ,बाडोलास ,जसुपुरा ,कुमास ,परडोली ,सिहोट ,गाडोदा , बागड़ोदा,शेखसर सिहोट ,माल्यासी ,बेवा ,रोरु,श्यामगढ़ ,बठोट ,पाटोदा ,सखडी ,दीपपुरा आदि राव जी का शेखावतो के गाँव है।
19 – गिरधरदासजी का शेखावत -
गिरधरदासजी - रायसल जी - राव सुजाजी -– राव रायमलजी - शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी – उदयकरणजी 
राजा रायसल जी की दूसरी शादी गांव मेड़ता के स्वामी इतिहास प्रसिद्ध वीर जयमल राठौड़ के पुत्र बिठ्ठलदास मेड़तिया की पुत्री [रानी "मेड़तणी जी"]के साथ हुयी थी। राजा रायसल जी की रानी "मेड़तणी जी" के गर्भ से दो पुत्रों का जन्म हुवा त्रिमलजी [तिरमलजी],गिरधरदासजी इन ही गिरधरदास के वंशज गिरधरदास जी का शेखावत कहलाये। राजा गिरधरजी रायसल जी के छोटे पुत्र थे किन्तु खंडेला की राजगद्दी इन्ही को मिली। खंडेला के अलावा दांता व खुड इनके मुख्य ठिकाने हैं। राणोली ,दादिया ,कल्याणपुरा ,तपिपल्या कोछोर ,डुकिया ,भगतपुरा ,रायपुरिया ,तिलोकपुरा ,सुजवास ,रलावता ,पलसाना बानुड़ा ,दुदवा ,रुपगढ़,सांगल्या ,गोडीयावास,जाजोद ठीकरिया ,बावड़ी आदि गिरघर जी के शेखावतो के गाँव हैं।
20 - भोजराजजी का शेखावत -
भोजराजजी - रायसल जी - राव सुजाजी -– राव रायमलजी - शेखाजी - राव मोकलजी - राव बाला जी – उदयकरणजी 
भोजराजजी - राजा रायसल के चतुर्थ पुत्र भोजराज का जन्म विक्रमी सम्वत 1624 की भाद्रपद शुक्ला एकादशी के दिन जादव ठकुरानी के गर्भ से [ मेड़ता के स्वामी वीरमदेव के पुत्र जगमालजी की पुत्री हंसकँवर [[हंस कुंवरी]के गर्भ से हुवा था ] इन ही भोजराज के वंशज भोजराजजी का शेखावत कहलाये।
भोजराज मेड़ता के शासक राठोड राव विरमदेव के कनिष्ट पुत्र जगमाल के दोहित्र थे। किशोरावस्था में ही भोजराज को खंडेला में रख कर वहां के शासन प्रबंध के कार्य पर नियुक्त कर दिया गया था। रायसल जी की मृत्यु वि .स . 1672 में हुई।
भोजराज जी के अधिकार में उदयपुर परगने के 45 गाँव जो उनकी जागीर में थे उदयपुरवाटी [पेंतालीसा] 
के अलावा खंडेले परगने के 12 गाँव जो उन्हें भाई बंट में मिले थे उनके स्वामित्व में थे। इनके वंशज भोजराज जी का कहलाते है। भोजराज जी के प्रपोत्र शार्दुल सिंह जी ने क्यामखानी नवाबों से झुंझुनू छीन ली तो झुंझुनू वाटी का पूरा प्रदेश इन के कब्जे में आ गया ये सादावत कहलाते है। झाझड ,गोठडा ,धमोरा , चिराणा ,गुढ़ा ,छापोली ,उदयपुरवाटी ,बाघोली ,चला ,मणकसास ,गुड़ा ,पोंख,गुहला ,चंवरा ,नांगल , परसरामपुरा आदि इन के गाँव है जिसको पतालिसा कहा जाता है। शार्दुल सिंघजी के वंशजो के पास खेतड़ी ,बिसाऊ ,सूरजगढ़ ,नवलगढ़ ,मंडावा डुड़लोद ,मुकन्दगढ़ ,महनसर चोकड़ी ,मलसीसर ,अलसीसर आदि ठिकाने थे। 
भोजराज जी के दो पुत्र थे –
       01. टोडरमलजी 
       02. जगरामसिंह
01 - टोडरमलजी - आमेर (जयपुर) के क्षत्रिय वंश [कछवाह] से अलग हुई एक शाखा शेखावत वंश महाराव [शेखाजी के वंसज] जिसमें जन्में भोजराज जी के जेष्ठ पुत्र टोडरमल थे । टोडरमल के अधिकार में उदयपुर का परगना यथावत बना रहा। ठाकुर टोडरमल अपने समय के प्रसिद्ध दातार हुये है।
राजा टोडरमल की अनूठी दृढ़ता -
कहा जाता है, की टोडरमल परम धर्मात्मा थे। धीणावता की तांबे की खान से होने वाली आय टोडरमल धार्मिक कार्यों पर खर्च कर देते थे। इससे चिढ़कर खान की देखभाल करने वाले एक अधिकारी ने दिल्ली सल्तनत से उनकी शिकायत कर दी। दिल्ली सल्तनत ने उन्हें रोका, तो राजा टोडरमल ने उसके आदेश के आगे झुकने से इनकार कर दिया। आखिरकार उदयपुर के महाराणा जगत सिंह ने उन्हें अपने राज्य में ससम्मान शरण दी।
उदयपुर के महाराणा की आमेर के राजा से तनातनी थी। वह आमेर के राजा को नीचा दिखाने के अवसर ढूंढते रहते थे। एक दिन राणा जगत सिंह को अजीब सनक सूझी। उन्होंने आमेर के किले की नकली आकृति बनवाई, ताकि उसे ध्वस्त कर आमेर के राजा को अपमानित कर सके। राजा टोडरमल ने महाराणा को समझाया कि इस मनोवृत्ति से शत्रुता पैदा होगी। महाराणा न माने, तो टोडरमल ने संकल्प लिया कि वह अपने पूर्वजों के आमेर का अपमान नहीं होने देंगे। वह तलवार लेकर उस कृत्रिम किले की रक्षा के लिए जा पहुंचे। महाराणा जब वहां पहुंचे, तो टोडरमल को उसकी रक्षा करते देख नतमस्तक होकर बोले, मातृभूमि की रक्षा के लिए आप जैसे वीरों की ही जरूरत है।आगे चलकर राजा टोडरमल ने अपने पराक्रम से राजस्थान के इतिहास में स्वर्णिम अध्याय जोड़ा।
राजा टोडरमल की अनूठी दातारी- कहा जाता है, एक बार टोडरमल कि दातारी की बातें जब उदयपुर (राणाजी का) के महाराणा जगतसिंह के पास पहुंची,तो जगत सिंह को ऐसा लगा कि इस उदयपुर की दातारी नीचे खिसक रही है। अतः उन्होंने टोडरमल की दातारी कि परीक्षा लेने के लिए अपने चारण हरिदास सिंधायच को भेजा। चारण के उदयपुर सीमा में प्रवेश करते ही उनको पालकी में बैठाया,और कहारों के साथ टोडरमल स्वयं भी पालकी में लग गए। उदयपुर पहुँचने पर उनका भारी स्वागत किया गया। बारहठ जी ने जब गद्दी पर टोडरमल के रूप में उसी व्यक्ति को बैठे देखा,जिसने उनकी पालकी में कन्धा दिया था। इससे बारहठ जी बड़े प्रभावित हुए। और जाते वक्त बारहठ जी को क्या दिया इसका तो पता नहीं पर चारण हरिदास उनकी दातारी पर बड़ा प्रसन्न हुआ, और निम्न दोहा कहा।

              "दोय उदयपुर ऊजला ,दोय दातार अटल्ल"
                दोय उदयपुर उजला , दो ही दातार अव्वल।
                एकज राणो जगत सिंह , दूजो टोडरमल ।।
टोडरमल जी के छह पुत्र थे -:
      01 - पुरषोतम सिंघजी - टोडरमल जी के छह पुत्रो में पुरषोतम सिंघजी जेष्ठ पुत्र थे। इनके वंशज झाझड में है। 
      02 – भीम सिंघजी - भीम सिंघजी के वंशज मंडावरा, धमोर, गोठडा और हरडिया में है।
      03 – स्याम सिंघजी - स्याम सिंघजी के अधिकार में डीडवाना के पास शाहपुर 12 गाँवो से था।
      04 – सुजाण सिंह – (सुजाण सिंह खंडेला )- टोडरमल जी के वीर पुत्र सुजाण सिंह खंडेला के दवेमंदिर की रक्षार्थ लड़ते हुए वीरगती प्राप्त हुये। तत्पश्चात राव जगतसिंह कासली ने शाहपुरा श्याम सिंह से छीन लिया। पैतृक गाँव छापोली भी इनके पास नही रहा, इनके वंशज मेही मिठाई में हैं। हिम्मत सिंघजी के वंशजो के पास उदयपुर था किन्तु यह भी झुंझार सिंह के पुत्रो नेछीन लिए। इनके वंशज आज कल कारी ,इखात्यरपुरा,पबना आदि गाँवो में है। झुंझार सिंह के पुत्र जगराम सिंह के पुत्र शार्दुल सिंह ने 1787 वि . स . में क्यामखानी नवाब से झुंझुनू पर कब्ज़ा कर लिया। 
      05 – झुंझार सिंह - टोडरमल जी पुत्रो में सबसे प्रतापी जुन्झार सिंह थे। जिन्होंने पृथक गुढा गाँव बसाया। टोडरमल जी कि मृत्यु वि.1723 या उसके बाद मानी जानी चाहिए। उनकी स्मृति में "किरोड़ी गांव" में छतरी बनी हुई है। टोडरमल ने अपने रनिवास के लिए उदयपुर में एक सुंदर महल का निर्माण करवाया। जो आज उनके वंशजो द्वारा उपयुक्त देखरेख के अभाव में खँडहर में तब्दील हो चूका है। किरोड़ी गांव में टोडरमल जी ने वि.1670 में गिरधारी जी का मंदिर बनवाया था।
   06 – जगतसिंह - जगतसिंह कासली।
02 – जगरामसिंह - भोजराज जी के पुत्र जगरामसिंह थे, जगरामसिंह के वंसज जगारामोत शेखावत कहलातें हैं। जगरामसिंह के पुत्र गोपालसिंह हुए, गोपालसिंह के पुत्र सालेहदीसिंह थे। भोजराज जी के पुत्र जगरामसिंह थे, जगरामसिंह के पुत्र गोपालसिंह हुए, गोपालसिंह के पुत्र सालेहदीसिंह थे।
गोपालसिंह - जगरामसिंह के पुत्र गोपालसिंह ने केध [Kedh] गांव बसाया।
सालेहदीसिंह - गोपालसिंह के पुत्र सालेहदीसिंह थे। ठाकुर सालेहदीसिंह ने नंगली और मुवारी [मोहनवाड़ी] गांव बसाया। 
अमरसिंह - सालेहदीसिंह के पुत्र अमरसिंह और रामसिंह ने खिरोड़ गांव बसाया। 
रामसिंह - सालेहदीसिंह के पुत्र अमरसिंह और रामसिंह ने खिरोड़ गांव बसाया।
शार्दुलसिंह - जगरामसिंह भोजराज जी के पुत्र थे, जगरामसिंह के वंसज जगारामोत शेखावत कहलातें हैं, जगरामसिंह के पुत्र शार्दुलसिंह थे -:
शार्दुलसिंह - शेखावाटी के झुंझनू मंडल के उत्प्थगामी मुस्लिम शासकों कायमखानी नवाब] को पराजित कर धीर वीर ठाकुर शार्दुलसिंह ने झुंझनू पर संवत. 1787 में अपनी सत्ता स्थापित की थी। झुंझनु में कायमखानी चौहान नबाब के भाई बंधू अनय पथगामी हो गये थे। उन्हें रणभूमि में पद दलित कर शेखावत वीर शार्दुलसिंह ने झुंझनू पर अधिपत्य स्थापित किया। इस विजय में उनके कायमखानी योद्धा भी सहयोगी थे। ठाकुर शार्दुलसिंह समन्यवादी शासक थे।
उन्होंने झुंझनू पर विजय प्राप्त कर नरहड़ के पीर दरगाह की व्यवस्था के लिए एक गांव भेंट किया और कई स्थानों पर नवीन मंदिर बनवाये और चारणों को ग्रामदि भेंट तथा दान में दिये। ठाकुर शार्दुलसिंह के तीन रानियों से छह प्रतापी पुत्र रत्न हुए। उन्होंने अपने जीवन काल में ही राज्य को पांच भागों में विभाजित कर अपने पांच जीवित पुत्रों के सुपुर्द कर दिया और अपने जीवन के चतुर्थ काल में परशुरामपुरा ग्राम में चले गये। वहां वे ईश्वराधना और भागवद धर्म का चिंतन मनन करने में दत्तचित्त रहने लगे और वहीं उन्होंने देहत्याग किया. परशुरामपुरा में उनकी भव्य व विशाल छत्री बनी है।
शार्दुलसिंह के राज्य के पांच भागों में बंट जाने के कारण यह पंचपाना के नाम से जाना जाता है। पंचपाना में उनके ज्येष्ठ पुत्र जोरावरसिंह के वंशधर चौकड़ी, मलसीसर, मंडरेला, चनाना, सुलताना, टाई और गांगियासर के स्वामी हुये। द्वितीय पुत्र किशनसिंह के खेतड़ी, अडुका, बदनगढ़, तृतीय नवलसिंह के नवलगढ़, मंडावा, मुकन्दगढ, महणसर, पचेरी, जखोड़ा, इस्माइलपुर, बलोदा और चतुर्थ केसरीसिंह के बिसाऊ, सुरजगढ और डूंडलोद आदि ठिकाने थे.। ये ठिकाने अर्द्ध-स्वतंत्र संस्थान थे. जयपुर राज्य से इनका नाम मात्र का सम्बन्ध था। कारण यह भूभाग शार्दूलसिंह और उसके वंशजों ने स्वबल से अर्जित किया था। 
खेतड़ी के ठाकुर को कोटपुतली का परगना और राजा बहादुर का उपटंक प्राप्त होने पर उनकी प्रतिष्ठा में और वृद्धि हुई। यहाँ के पांचवें शासक राजा फतहसिंह के बाद राजा अजीतसिंह अलसीसर से दत्तक आकर खेतड़ी की गद्दी पर आसीन हुये। वे अपने सम-सामयिक राजस्थानी नरेशों और प्रजाजनों में बड़े लोकप्रिय शासक थे। वे जैसे प्रजा हितैषी, न्याय प्रिय, कुशल प्रबंधक, उदारचित्त थे, वैसे ही विद्वान, कवि और भक्त हृदय भी थे। राजस्थान के अनेक कवियों ने राजा अजीतसिंह की विवेकशीलता, न्यायप्रियता और गुणग्राहकता की प्रशंसा की है। जोधपुर के प्रसिद्ध कवि महामहोपाध्याय कविराज मुरारिदान आशिया ने कहा


दान छड़ी कीरत दड़ी, हेत पड़ी तो हाथ।
भास चडी अंग ना भिड़ी, नमो खेतड़ी नाथ।। 
ठाकुर शार्दुलसिंह के छह पुत्र थे जिन में से एक पुत्र की म्रत्यु युवा अवस्था में ही हो गयी थी, ठाकुर शार्दुलसिंह ने अपनी जायदाद और राज काज को इन पांच पुत्रों में बराबर बाँट दिया था, और उन पांचों ने पांच जगह अलग अलग अपना शासन करना चालू कर दिया, इस पांच जगह पर बने ठिकानों को पंच पाना के नाम से जाना जाता है। 
महाराव शार्दुलसिंह शेखावत का जन्म 1681 में हुआ था, और म्रत्यु 17 अप्रेल1742 में हुयी थी। वे झुंझुनूं के शासक थे। शार्दुलसिंह की तीन शादियांहुई थी-: 
पहली शादी 1698 में सहजकांवर [बिकीजी] के साथ हुयी जो मनरूपसिंह राठौर [ बिका ] गांव नाथासर की पुत्रि थी। 
दूसरी शादी सिरेकंवर [बिकीजी] के साथ हुयी जो नाथासर गांव के मकलसिंह की पुत्रि थी। 
तीसरी शादी बखतकंवर के साथ हुयी जो गांव पूंगलोत (डेगाना) [जिला - नागौर [राजस्थान]] के देवीसिंह राठोड़ [मेड़तिया] की पुत्रि थी। झुंझुनू के शासक शार्दुल सिंह शेखावत की रानी मेड़तनी जी ने सन 1783 ई० मे एक बावड़ी का निर्माण करवाया था। जिसे मेड़तनी की बावड़ी के नाम से जाना जाता है। जगरामसिंह, रायसल जी के पुत्र भोजराजजी के पुत्र थे, जगरामसिंह के पुत्र शार्दुलसिंह थे 

शार्दुलसिंहके छह पुत्र हुए थे -:
      01 - जोरावरसिंह - जोरावरसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की पहली पत्नी सहजकंवर [बिकीजी] की कोख से गांव कांट, जिला - झुंझुनूं [राजस्थान] में हुवा था उन्होंने जोरावरगढ़ फोर्ट बनवाया था, जोरावरसिंह की म्रत्यु 1745 में हुयी थी, इनके वंसज चौकड़ी ,टाई, कालीपहाड़ी, मलसीसर, गांगियासर,मंड्रेला आदि में। 
      02 - किशनसिंह - किशनसिंह का जन्म शार्दुलसिंह कीतीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था, किशनसिंह का जन्म 1709, में हुवा था। इनके वंसज खेतड़ी, हीरवा, अरूका, सीगर, अलसीसर आदि में। किशनसिंह के पुत्र भोपालसिंह, भोपालसिंह के पुत्र पहाड़सिंह व बाघसिंह [खेतड़ी]
      03 – बहादुरसिंह - [युवा अवस्था में म्रत्यु] बहादुरसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा थ, बहादुरसिंह का जन्म 1712, में हुवा था और म्रत्यु 1732 में ।
      04 – अखेसिंह - अखेसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था, अखेसिंह का जन्म 1713, में हुवा था और म्रत्यु 1750 में इन के कोई सन्तान नहीं थी ।
      05 - नवलसिंह - नवलसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था, नवलसिंह का जन्म 1715, में हुवा था और म्रत्यु 14 फ़रवरी 1780 में । इन के वंसज नवलगढ़, महनसर, दोरासर, मुकुंदगढ़, नरसिंघानी,बलूंदा और मंडावा आदि में ।
      06 – केसरीसिंह - शार्दुलसिंह के सबसे छोटे पुत्र यानि छठें पुत्र केशरीसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था, नवलसिंह का जन्म 1728, में हुवा था और म्रत्यु 1768 में । इन के वंसज डूंडलोद, सूरजगढ़ , और बिसाऊ आदि में ।
01 - जोरावरसिंह - (ठाकुर जोरावरसिंह के वंसज): चौकड़ी
जोरावरसिंह - जोरावरसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की पहली पत्नी सहजकंवर [बिकीजी] की कोख से गांव कांट, जिला - झुंझुनूं [राजस्थान] में हुवा था उन्होंने जोरावरगढ़ फोर्ट बनवाया था, जोरावरसिंह की म्रत्यु 1745 में हुयी थी, इनके वंसज चौकड़ी ,टाई, कालीपहाड़ी, मलसीसर, गांगियासर,मंड्रेला आदि में। 
जोरावरसिंह [झुंझुनू] के पांच पुत्र हुए -:
      01. बखतसिंह - बखतसिंह ने 1745 में चौकड़ी गांव बसाया । 
      02. महासिंह - जोरावरसिंह झुंझुनू के पुत्र महासिंह ने 1745 में मलसीसर गांव बसाया। 
      03. दौलतसिंह - जोरावरसिंह झुंझुनू के तीसरे पुत्र दौलतसिंह नें 1751/1791 मंड्रेला गांव बसाया।
      04. सालिमसिंग - जोरावरसिंह झुंझुनू के पुत्र सालिमसिंग ने टाइ व सिरोही गांव बसाया। 
      05. कीरतसिंह - जोरावरसिंह झुंझुनू के पुत्र कीरतसिंह ने डाबड़ी गांव बसाया । 
रणजीतसिंह - रणजीतसिंह दौलतसिंह के पुत्र व जोरावरसिंह के पोते थे, रणजीतसिंह ने चनाना गांव बसाया था।
02 - किशनसिंह – (ठाकुर किश नसिंह के वंसज): खेतड़ी
किशनसिंह - किशनसिंह का जन्म शार्दुलसिंह कीतीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था, किशनसिंह का जन्म 1709, में हुवा था। इनके वंसज खेतड़ी, हीरवा, अरूका, सीगर, अलसीसर आदि में। किशनसिंह के पुत्र भोपालसिंह, भोपालसिंह के पुत्र पहाड़सिंह व बाघसिंह [खेतड़ी]
खेतड़ी नगर 1742 में ठाकुर किशनसिंह ने बसाया था जो प्राचीन रियासत जयपुर का सीकर के बाद खेतड़ी नगर दूसरा सबसे बड़ा ठिकाना था। 
01 - भोपालसिंह - ठाकुर किशनसिंह के पुत्र भोपालसिंह ने 1970 में भोपालगढ़ फोर्ट, बागोर फोर्ट' और खेतड़ी महल बनवाये थे। किशनसिंह के पुत्र भोपालसिंह भोपालसिंह के दो पुत्र हुए-:
             * - पहाड़सिंह 
             *- बाघसिंह [खेतड़ी] - और भोपालसिंह के पुत्र पहाड़सिंह ने हीरवा के किले [गढ़] का निर्माण 1763 में करवाया था। 
02 - छत्तरसिंह - ठाकुर किशनसिंह के पुत्र छत्तरसिंह अलसीसर और उसके किले [गढ़] का पहली बार निर्माण 1853.में किया था, उसके बाद अलसीसर की दूसरी बार बसावट ठाकुर गणपतसिंह ने 1853.में की थी। 
03 - रामनाथसिंह - ठाकुर किशनसिंह के पुत्र ठाकुर रामनाथसिंह ने हीरवा गांव बसाया था। 
04 - मेहताबसिंह - सिगरा गांव ठाकुर किशनसिंह के पुत्र मेहताबसिंह ने बसाया था। 
05 - दुल्हासिंह - अरूका गांव ठाकुर किशनसिंह के पुत्र ठाकुर दुल्हासिंह ने 1796.बसाया था। 
06 - बदनसिंह - बदनगढ़ ठिकाने की स्थापना ठाकुर किशनसिंह के पुत्र ठाकुर बदनसिंह ने की थी।
03 – बहादुरसिंह - [युवा अवस्था में म्रत्यु] – 
बहादुरसिंह - [युवा अवस्था में म्रत्यु] बहादुरसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा थ, बहादुरसिंह का जन्म 1712, में हुवा था और म्रत्यु 1732 में ।
04 – अखेसिंह 
अखेसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था, अखेसिंह का जन्म 1713, में हुवा था और म्रत्यु 1750 में इन के कोई सन्तान नहीं थी ।
05 – नवलसिंह- (ठाकुर नवलसिंह के वंसज): नवलगढ़
नवलसिंह - नवलसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था, नवलसिंह का जन्म 1715, में हुवा था और म्रत्यु 14 फ़रवरी 1780 में। इन के वंसज नवलगढ़, महनसर, दोरासर, मुकुंदगढ़, नरसिंघानी,बलूंदा और मंडावा आदि में ।
नवलगढ़ , की स्थापना रोहिली गांव के पास ठाकुर नवलसिंह ने 1737 में की थी तथा वंहा पैर दो किले [गढ़] बनवाये पहला बाला किला[गढ़], दूसरा किला[गढ़] काचियागढ़ फोर्ट वर्तमान में काचियागढ़ को रूपनिवास पैलेस के नाम से जाना जाता है। 
मंडावा, नवलगढ़ के ठाकुर नरसिंहदास के तीसरे और चौथे पुत्र ने 1791 में को बसाया और 1755 में किले [गढ़] का निर्माण ठाकुर नवलसिंह करवाया था।
नाहरसिंह - नवलगढ़ के ठाकुर नवलसिंह के पुत्र नाहरसिंह ने महनसर गांव 1768 में बसाया था तथ वंहा एक किले [गढ़] का निर्माण करवाया था।
भवानीसिंह - ठाकुर नाहरसिंह के पुत्र भवानीसिंह ने परसरामपुरा, ठिकाने का निर्माण किया था,और वंहाँ पर एक छोटा किले [गढ़] का निर्माण भी करवाया था।
मुकंदसिंह - नवलगढ़ के ठाकुर नाथूसिंह के पुत्र मुकंदसिंह ने 1859 में मुकुंदगढ़ ठिकाने का निर्माण किया था।
प्रेमसिंह - दोरासर और पचेरी, ठिकाने का निर्माण प्रेमसिंह ने किया था। 
इस्माइलपुर 
जाकोड़ा 
कोलिंडा आदि

06 – केशरीसिंह - (ठाकुर केसरीसिंह के वंसज) डूंडलोद
केसरीसिंह - शार्दुलसिंह के सबसे छोटे पुत्र यानि छठें पुत्र केशरीसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था, नवलसिंह का जन्म 1728, में हुवा था और म्रत्यु 1768 में । इन के वंसज डूंडलोद, सूरजगढ़, और बिसाऊ आदि में। डूंडलोद, ठिकाने का निर्माण ठाकुर केसरीसिंह ने किया था, केसरीसिंह ने डूंडलोद किले [गढ़] का निर्माण 1750.में करवाया था।बिसाऊ , ठिकाने का निर्माण ठाकुर केसरीसिंह ने 1746 में किया था, और वंहाँ पर एक किले [गढ़] का निर्माण भी करवाया था।
सूरजमलजी - सूरजगढ़, ठिकाने का निर्माण 1778 में ठाकुर सूरजमल ने किया और और वंहाँ पर एक किले [गढ़] का निर्माण भी करवाया था। 
03 – झूँझारसिंह - 
झुंझार सिंह - झुंझार सिंह टोडरमल जी पुत्रो में सबसे प्रतापी जुन्झार सिंह थे। जिन्होंने पृथक गुढा गाँव बसाया।
भोजराजजी के शेखावतों की दो उप शाखाये हैं -
राजा रायसल के पुत्र और उदयपुरवाटी के स्वामी भोजराज के वंशज भोजराज जी का शेखावत कहलाते हैं, भोजराज जी के शेखावतों की दो उप शाखाएँ हैं –:       
        01.-शार्दुल सिंह का शेखावत -
        02.-सलेदी सिंह का शेखावत -
1.शार्दुलसिंह का शेखावत - शेखावाटी के झुंझनू मंडल के उत्प्थगामी मुस्लिम शासकों कायमखानी नवाब] को पराजित कर धीर वीर ठाकुर शार्दुलसिंह ने झुंझनू पर संवत. 1787 में अपनी सत्ता स्थापित की थी। झुंझनु में कायमखानी चौहान नबाब के भाई बंधू अनय पथगामी हो गये थे। उन्हें रणभूमि में पद दलित कर शेखावत वीर शार्दुलसिंह ने झुंझनू पर अधिपत्य स्थापित किया। इस विजय में उनके कायमखानी योद्धा भी सहयोगी थे। ठाकुर शार्दुलसिंह समन्यवादी शासक थे। उन्होंने झुंझनू पर विजय प्राप्त कर नरहड़ के पीर दरगाह की व्यवस्था के लिए एक गांव भेंट किया और कई स्थानों पर नवीन मंदिर बनवाये और चारणों को ग्रामदि भेंट तथा दान में दिये। ठाकुर शार्दुलसिंह के तीन रानियों से छह प्रतापी पुत्र रत्न हुए। उन्होंने अपने जीवन काल में ही राज्य को पांच भागों में विभाजित कर अपने पांच जीवित पुत्रों के सुपुर्द कर दिया और अपने जीवन के चतुर्थ काल में परशुरामपुरा ग्राम में चले गये। वहां वे ईश्वराधना और भागवद धर्म का चिंतन मनन करने में दत्तचित्त रहने लगे और वहीं उन्होंने देहत्याग किया. परशुरामपुरा में उनकी भव्य व विशाल छत्री बनी है । 
पंचपाना 
शार्दुलसिंह के राज्य के पांच भागों में बंट जाने के कारण यह पंचपाना के नाम से जाना जाता है। पंचपाना में उनके ज्येष्ठ पुत्र जोरावरसिंह के वंशधर चौकड़ी, मलसीसर, मंडरेला, चनाना, सुलताना, टाई और गांगियासर के स्वामी हुये। द्वितीय पुत्र किशनसिंह के खेतड़ी, अडुका, बदनगढ़, तृतीय नवलसिंह के नवलगढ़, मंडावा, मुकन्दगढ, महणसर, पचेरी, जखोड़ा, इस्माइलपुर, बलोदा और चतुर्थ केसरीसिंह के बिसाऊ, सुरजगढ और डूंडलोद आदि ठिकाने थे.। ये ठिकाने अर्द्ध-स्वतंत्र संस्थान थे. जयपुर राज्य से इनका नाम मात्र का सम्बन्ध था। कारण यह भूभाग शार्दूलसिंह और उसके वंशजों ने स्वबल से अर्जित किया था। 
खेतड़ी के ठाकुर को कोटपुतली का परगना और राजा बहादुर का उपटंक प्राप्त होने पर उनकी प्रतिष्ठा में और वृद्धि हुई। यहाँ के पांचवें शासक राजा फतहसिंह के बाद राजा अजीतसिंह अलसीसर से दत्तक आकर खेतड़ी की गद्दी पर आसीन हुये। वे अपने सम-सामयिक राजस्थानी नरेशों और प्रजाजनों में बड़े लोकप्रिय शासक थे। वे जैसे प्रजा हितैषी, न्याय प्रिय, कुशल प्रबंधक, उदारचित्त थे, वैसे ही विद्वान, कवि और भक्त हृदय भी थे। राजस्थान के अनेक कवियों ने राजा अजीतसिंह की विवेकशीलता, न्यायप्रियता और गुणग्राहकता की प्रशंसा की है। जोधपुर के प्रसिद्ध कवि महामहोपाध्याय कविराज मुरारिदान आशिया ने कहा-
                          दान छड़ी कीरत दड़ी, हेत पड़ी तो हाथ।
                          भास चडी अंग ना भिड़ी, नमो खेतड़ी नाथ।। 
ठाकुर शार्दुलसिंह के छह पुत्र थे जिन में से एक पुत्र की म्रत्यु युवा अवस्था में ही हो गयी थी, ठाकुर शार्दुलसिंह ने अपनी जायदाद और राज काज को इन पांच पुत्रों में बराबर बाँट दिया था, और उन पांचों ने पांच जगह अलग अलग अपना शासन करना चालू कर दिया, इस पांच जगह पर बने ठिकानों को पंच पाना के नाम से जाना जाता है। 
महाराव शार्दुलसिंह शेखावत का जन्म 1681 में हुआ था, और म्रत्यु 17 अप्रेल1742 में हुयी थी। वे झुंझुनूं के शासक थे।शार्दुलसिंह की तीन शादियांहुई थी-: 
01 - पहली शादी 1698 में सहजकांवर [बिकीजी] के साथ हुयी जो मनरूपसिंह राठौर [ बिका ] गांव नाथासर की पुत्रि थी। 
02 - दूसरी शादी सिरेकंवर [बिकीजी] के साथ हुयी जो नाथासर गांव के मकलसिंह की पुत्रि थी। 
03 - तीसरी शादी बखतकंवर के साथ हुयी जो गांव पूंगलोत (डेगाना) [जिला - नागौर [राजस्थान]] के देवीसिंह राठोड़ [मेड़तिया] की पुत्रि थी। झुंझुनू के शासक शार्दुल सिंह शेखावत की रानी मेड़तनी जी ने सन 1783 ई० मे एक बावड़ी का निर्माण करवाया था। जिसे मेड़तनी की बावड़ी के नाम से जाना जाता है। जगरामसिंह, रायसल जी के पुत्र भोजराजजी के पुत्र थे, जगरामसिंह के पुत्र शार्दुलसिंह थे।
शार्दुलसिंह के छह पुत्र हुए थे -:
01 - जोरावरसिंह - जोरावरसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की पहली पत्नी सहजकंवर [बिकीजी] की कोख से गांव कांट, जिला - झुंझुनूं [राजस्थान] में हुवा था उन्होंने जोरावरगढ़ फोर्ट बनवाया था, जोरावरसिंह की म्रत्यु 1745 में हुयी थी, इनके वंसज चौकड़ी ,टाई, कालीपहाड़ी, मलसीसर, गांगियासर,मंड्रेला आदि में। 
02 - किशनसिंह - किशनसिंह का जन्म शार्दुलसिंह कीतीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था, किशनसिंह का जन्म 1709, में हुवा था। इनके वंसज खेतड़ी, हीरवा, अरूका, सीगर, अलसीसर आदि में। किशनसिंह के पुत्र भोपालसिंह, भोपालसिंह के पुत्र पहाड़सिंह व बाघसिंह [खेतड़ी]
03 – बहादुरसिंह - [युवा अवस्था में म्रत्यु] बहादुरसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा थ, बहादुरसिंह का जन्म 1712, में हुवा था और म्रत्यु 1732 में ।
04 – अखेसिंह - अखेसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था, अखेसिंह का जन्म 1713, में हुवा था और म्रत्यु 1750 में इन के कोई सन्तान नहीं थी ।
05 - नवलसिंह - नवलसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था, नवलसिंह का जन्म 1715, में हुवा था और म्रत्यु 14 फ़रवरी 1780 में। इन के वंसज नवलगढ़, महनसर, दोरासर, मुकुंदगढ़, नरसिंघानी,बलूंदा और मंडावा आदि में ।
06 – केसरीसिंह - शार्दुलसिंह के सबसे छोटे पुत्र यानि छठें पुत्र केशरीसिंह का जन्म शार्दुलसिंह की तीसरी पत्नी बखतकंवर की कोख से हुवा था, नवलसिंह का जन्म 1728, में हुवा था और म्रत्यु 1768 में । इन के वंसज डूंडलोद, सूरजगढ़, और बिसाऊ आदि में ।
भोजराजजी के पोते जुझारसिंहजी के बेटों से भी दो उपशाखाएँ निकली हैं –
राजा रायसल के चतुर्थ पुत्र भोजराजजी गुढा के शासक थे। भोजराज जी के पुत्र टोडरमलजी थे, टोडरमलजी के पुत्र झूँझारसिंह थे।जुझारसिंहजी की सन्तानों से मातृपक्ष के आधार पर दो उप शाखाये हैं –:
गौड़ जी के शेखावत, वीदावतजी के शेखावत

क्या है जोधा बाई की एतिहासिक सच्चाई ??


क्या है जोधा बाई  की एतिहासिक सच्चाई ??
आदि-काल से क्षत्रियो के राजनीतिक शत्रु उनके प्रभुत्वता  को चुनौती  देते  आये है !किन्तु क्षत्रिय अपने क्षात्र-धर्म के पालन से उन सभी षड्यंत्रों का मुकाबला सफलता पूर्वक करते रहे है !कभी कश्यप ऋषि और दिति के वंशजो जिन्हें कालांतर के दैत्य या राक्षस नाम दिया गया था ,क्षत्रियो से सत्ता हथियाने के लिए भिन्न भिन्न प्रकार से आडम्बर और कुचक्रो को रचते रहे ! और कुरुक्षेत्र के महाभारत में जबकि  अधिकांश ज्ञानवान क्षत्रियों ने एक साथ वीरगति प्राप्त कर ली ,उसके बाद से ही हमारे इतिहास को केवल कलम के बल पर दूषित कर दिया गया !इतिहास में भरसक प्रयास किया गया की उसमे हमारे शत्रुओं को महिमामंडित  किया जाये और क्षत्रिय गौरव को नष्ट किया जाये   ! किन्तु जिस प्रकार किसे  हीरे  के ऊपर लाख  धूल डालो उसकी चमक फीकी नहीं पड़ती ठीक वैसे ही ,क्षत्रिय गौरव उस दूषित किये गए इतिहास से भी अपनी चमक  बिखेरता रहा !
फिर धार्मिक आडम्बरो के जरिये क्षत्रियो को प्रथम स्थान से दुसरे स्थान पर धकेलने का कुचक्र प्रारम्भ  हुआ ,जिसमे आंशिक सफलता भी मिली,,,,किन्तु क्षत्रियों की राज्य शक्ति को कमजोर करने के लिए उनकी साधना पद्दति को भ्रष्ट करना जरुरी समझा गया इसिलिय्रे अधर्म को धर्म बनाकर पेश किया गया !सात्विक यज्ञों के स्थान पर कर्म्-कांडो और ढोंग को प्रश्रय दिया गया !इसके विरोध में क्षत्रिय राजकुमारों द्वारा धार्मिक आन्दोलन चलाये गए जिन्हें धर्मद्रोही पंडा-वाद ने धर्म-विरोधी घोषित कर दिया ,,इस कारण इन क्षत्रिय राजकुमारों के अनुयायियों ने नए पन्थो का जन्म दिया जो आज अनेक नामो से धर्म कहलाते है ,,,,,ये नए धर्म चूँकि केवल एक महान व्यक्ति की विचारधारा के समर्थक रह गए और मूल क्षात्र-धर्म से दूर होगये, इस कारण कालांतर में यह भी अपने लक्ष्य से भटक कर स्वयं ढोंग और आडम्बर से ग्रषित होगये !
 इसके बाद इन्ही धर्मो में से इस्लाम ने बाकी धर्मो को नष्ट करने हेतु तलवार का सहारा लिया ,,,इस कारण क्षत्रियों ने इसका जम कर विरोध किया और इस्लाम के समर्थको ने राज्य सत्ता को धर्म विस्तार के लिए आसान तरीका समझ ,आदिकाल से स्थापित क्षत्रिय साम्राज्यों को ढहाना शुरू कर दिया ! क्षत्रियों ने शस्त्र तकनिकी को तत्कालीन वैज्ञानिक समुदाय यानि ब्राह्मणों के भरोसे  छोड़ दिया तो, परिणाम हुआ क्षत्रिय तोप के आगे तलवारों से लड़ते रहे ,,,,,चंगेज खान से लेकर बाबर तक तो सिर्फ भारत को लूटते रहे किन्तु बाबर ने भारत में अपना स्थायी साम्राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली ! किन्तु भारत में पहले ही आचुके अफगानों ने हुमायु से सत्ता छीन ली और  हुमायूँ दर-दर की ठोकरे खाता हुआ हुआ शरण के लिए अमरकोट के राजपूत राजा के यहाँ पहुंचा !अपनी गर्भवती बेगम को राजपूतों की शरण में छोड़ ,अपने राज्य को पुनः प्राप्त करने की तैयारियों में जुट गया !वहीँ  जलालुद्धीनका जन्म हुआ और १३ वर्ष तक उसकी परवरिश राजपूत परिवार में हुयी !
हुमायूँ जब बादशाह बना तब पर्शिया से कुछ परिवारों को अपने साथ भारत लाया था ! जो की मूलरूप से मीनाकारी का कार्य किया करते थे !उनके परिवारों में लड़कियों के विवाह का चलन नहीं था ,,इस कारण उनके कुछ परिवार अमरकोट और उसके आसपास  कुछ पर्शियन लड़कियाँ दासियों का कार्य करती थी! इन्ही में से कुछ दासिया जोधपुर राजपरिवार में भी रहने लगी ! जोधपुर की राजकुमारी की एक निजी दासी जो पर्शियन थी ,जब उसके एक कन्या का जन्म हुआ तब वह रोने लगी की इस बच्ची का कोई भविष्य नहीं है 1 क्योंकि इसका विवाह नहीं होगा ,तब राजकुमारी ने उसे वचन दिया कि मै इसका विवाह किसी राजपरिवार में करूंगी !जब जोधपुर कि राजकुमारी जो कि आमेर के राजा भारमल की रानी बनी ,ने प्रथम मिलन की रात्रि को ही राजा भारमल से वचन लेलिया कि हरखू को मैंने अपनी धर्म बेटी बनाया हुआ है और मै चाहती हूँ कि उसका विवाह किसी राजपरिवार में हो,,राजा भारमल ने जोधपुर की राजकुमारी को वचन देदिया कि वह उसका विवाह किसी राजपरिवार में कर देंगे !
किन्तु यह आसान कार्य नहीं था क्योंकि किसी भी राजपूत परिवार ने हरखू से विवाह करना उचित नहीं समझा इस कारण उसकी उम्र  काफी होगई! किसी भी राजपरिवार तो दूर साधारण गैर राजपूत हिन्दू परिवार ने भी तत्कालीन परिस्थितियों में हरखू से विवाह करने से मना कर दिया ,,इसकारण रानी का राजा भारमल से अपना वचन नहीं निभाने का उलहना असहनीय होता जारहा था ! इससे पूर्व जलालुद्धीन अकबर जब बादशाह बना तब ढूँढार (आमेर) में नरुकाओं का विद्रोह चल रहा था, इस कारण राजा भारमल ने बाध्य होकर अकबर से संधि करली थी, ताकि नरुकाओं एवं अन्य सरदारों के विद्रोह  को दबाया जासके !और अकबर से राजा भारमल की इस संधि में कोई वैवाहिक शर्त जैसा कि आज दिखाने का प्रयास किया जाता है, कुछ नहीं था !
जब अकबर अजमेर शरीफ की यात्रा के लिए जा रहा था,तो रास्ते में राजा भारमल जी ने शिष्टाचार भेट कि तो वह कुछ चिंतित थे ,अकबर ने भारमल जी से चिंता का कारण जाना तो उन्होंने हरखू के के विवाह से सम्बंधित बात सविस्तार बतायी ,,अकबर ने पूंछा कि "महाराज उसका विवाह हिन्दू रीती से होगा या मुश्लिम रीति से?" भारमल जी ने बताया कि हिन्दू रीति से तब अकबर ने पूंछा कि कन्यादान कौन करेगा ? भारमल जी ने कहा कि हरखू मेरी  धर्म पुत्री है और इस नाते कन्यादान मै ही करूँगा ! तब बादशाह अकबर ने कहा कि "मै  राजपूत नहीं हूँ, किन्तु मेरा  जन्म और परवरिश राजपूत परिवार में हुयी थी ,,,ठीक उसी तरह जैसे हरखू राजपूत नहीं है , किन्तु उसका भी जन्म और परवरिश भी राजपूत परिवार में हुयी है " अतः यदि आपको उसके पिता बनाने में कोई ऐतराज नहीं तो मुझे उसके साथ विवाह करने में भी कोई ऐतराज नहीं है ! इसके बाद हरखू का विवाह अकबर के साथ किया गया ! यह कोई शर्मिंदगी या बदनामी की बात नहीं थी ,बल्कि राजा भारमल की बुद्धिमानी और धर्म और नारी जाति के प्रति सम्मान था,जिसकी सर्वत्र प्रशंसा की गयी,खासतोर पर पर्शिया के धर्म गुरुओं ने राजा भारमल को पत्र लिखकर एक पर्शिया लड़की के जीवन को संवारने के लिए  प्रशंसा पत्र भेजा !
सिक्खों के गुरुओं ने भी इसकी प्रशंसा की और राजा भारमल की बुद्धिमानी के लिए साधुवाद दिया ! यह कहना गलत है कि यह हरखू जीवन भर हिन्दू रही,, ,वह कभी भी हिन्दू नहीं थी ,,,हां जब वह आमेर में रहती थी तब आमेर राजपरिवार के इष्ट देव श्री गोविन्देव जी की पूजा किया करती थी, इस कारण वह गोविन्द देव जी की पुजारी जरुर थी वरन तो वह फिर कभी भी जीवन में हरखू नहीं कहलाई उसका नाम मरियम बेगम पड़ गया और उसे बाकायदा इस्लाम रीति से ही कब्र में दफनाया गया था !जहाँगीर उसी मरियम उज्जमानी का बेटा था  ! जोधा नाम से जो प्रसिद्द थी वह जोधपुर की एक दासिपुत्री जगत गुसाईं (जो कि हरखू के ही भाई कि बेटी थी), जिसका निकाह जहाँगीर के साथ हुआ था और शाहजहाँ की माँ थी ,वह चूँकि जोधपुर से सम्बंधित थी और उसका कन्यादान मोटा राजा उदय सिंह जी ने किया था , इस कारण जोधा भी कहलाती थी ! रही बात आज लोग उस जगत गुसाईं उर्फ़ जोधा को अकबर से क्यों जोड़ बैठे ??तो यह तो सिर्फ फ़िल्मी जगत की उपज है ,जब पहली बार हरखू को जोधा बाई बना दिया गया, वह थी मुगले-आजम फिल्म ,,उस समय फिल्मों को कोई गंभीरता से नहीं लेता था !इस कारण फिल्म की प्रसिद्धि के बाद जोधा का नाम अकबर से जुड़ गया !और इस फिल्म के बाद जो छोटे मोटे इतिहासकार हुए उन्होंने भी अकबर के साथ जोधा का नाम जोड़ने का ही दुष्कृत्य किया है !
और रही सही कसर पूरी कर दी आशुतोष गोवोरकर ने "जोधा-अकबर" नाम से फिल्म बनाकर !अब इसे आगे बढ़ा  रही है ,नारी के नाम पर धब्बा ,एकता कपूर जो एक बदनाम सीरियल को जी टी वी पर प्रसारित लगातार प्रसारित किये जारही है ! अब हम बात करते है कि यह सब अनायास हुआ या किसी साजिश के जरिये ???? बहुत सी डीबेटों में हम से यह भी पूंछा गया गया कि आखिर फिल्म ,टी.वी.और मिडिया ,शासन-प्रशासन और तमाम प्रचार प्रसार के साधन राजपूत -क्षत्रिय संस्कृति के विरोधी क्यों होगये ?? इसका बिलकुल साफ-साफ उत्तर है कि देश के विभाजन से पूर्व तक लगभग सभी स्थानीय निकाय या शासन तंत्र पर क्षत्रियों का ही अधिकार था और यदि राजपूत-क्षत्रियों की छवि को धूमिल नहीं किया जाता तो, हमसे जिन लोगो ने सत्ता केवल झूंठ और लोगो को सब्जबाग दिखाकर प्राप्त की थी, उसे शीघ्र ही क्षत्रिय समाज पुनः वापिस लेलता !और होसकता है कि राष्ट्र को आज तक के ये दुर्दिन देखने ही नहीं पड़ते !इसलिए राजनीतिक षड़यंत्र के तहत क्षत्रिय समाज की संस्कृति ,इतिहास और छवि को मटियामेट करने के लिए समस्त साधन एकजुट होकर हमला करने लगे ,,,,ताकि क्षत्रिय होना कोई गौरव की बात नहीं रहे बल्कि शर्म की बात होजाये,,,,,किन्तु क्षत्रिय समाज ने अपने पुरुषार्थ के बल पर न केवल अपनी प्रसान्सगिकता ही बनाये रखी बल्कि तमाम दुश्चक्रो को तोड़ने में सक्षमता दिखाई है ,,,,,,इस कारण यह समस्त विरोधी शक्ति एक साथ अब पुनः क्षत्रिय स्वाभिमान और गौरव को नष्ट करने में जुट गयी है !जहाँ तक इतिहास का सवाल है तो वर्तमान समय में उपलब्द्ध  इतिहास दो तरह के लोगो के द्वारा   लिखा गया है ,,,,एक तो चारणों ,भाटों और राजपुरोहितों द्वारा  लिखा गया है, इसमें  यह कमी रही है कि यह  या तो अपने स्वामी की प्रशंसा में या अपने स्वामी के शत्रु की छवि को धूमिल करने के लिए लोखा गया था !दूसरी तरफ लिखा गया इतिहास  विदेशी आक्रान्ताओं और हमारे राजनितिक शत्रुओं ने अपने स्वामी मुगलों और आतातायियों के पक्ष में इतिहास लिखा और हमारे चारणों और भाटों ने  हमारे लिए इतिहास लिखा किन्तु देश के विभाजन के बाद पंडित नेहरू जैसे लोगों ने हमारे राजनितिक शत्रुओं और विदेशी आक्रान्ताओं  के लिखे इतिहास को मान्यता  दी ताकि क्षत्रियो की छवि को धूमिल किया जासकें और हमारे परम्परागत इतिहासकारों के इतिहास को ख़ारिज कर दिया ताकि क्षत्रियो में स्वाभिमान के पुनर्जीवन का अवसर ही नहीं मिल पाए ! !,,,,,

फिर भी लोकगीतों,भजनों,लोक-कथाओं,स्वतन्त्र  कहानीकार और साहित्यकार मुंशी प्रेम चंद जैसे लोगों, मंदिर के शिलालेखो,के जरिये आमजनता के समक्ष क्षत्रिय गौरव पहुँच गया है !इसलिए शिक्षा के नाम पर जो इतिहास पढाया जाता है ,और मनोरंजन के नाम पर टी.वी. पर जो दिखाया जाता है वह असत्य के आलावा और कुछ नहीं है !!!! ऐसे में हम क्षत्रिय जो समस्त चर-अचर ब्रह्मांड के रक्षक है, क्या केवल अपने धर्म ,संस्कृति और गौरव की रक्षा के लिए भी नहीं जागेंगे ????तब धिक्कार है ऐसे कायरता और नपुंसकता भरे जीवन को ,,,,,,,,,

Monday, 4 July 2016

भारत का इतिहास

भारत का इतिहास 

Bhojraj Singh Shekhawat Manaksas 

Monday, 04 July 2016

राजपूत इतिहास RAJPUT HISTORY

राजपूत उत्तर भारत का एक क्षत्रिय कुल। यह नाम राजपुत्र का अपभ्रंश है। राजस्थान में राजपूतों के अनेक किले हैं। राठौर, कुशवाहा, सिसोदिया, चौहान, जादों, पंवार आदि इनके प्रमुख गोत्र हैं। राजस्थान को ब्रिटिशकाल मे राजपूताना भी कहा गया है। पुराने समय में आर्य जाति में केवल चार वर्णों की व्यवस्था थी, किन्तु बाद में इन वर्णों के अंतर्गत अनेक जातियाँ बन गईं। क्षत्रिय वर्ण की अनेक जातियों और उनमें समाहित कई देशों की विदेशी जातियों को कालांतर में राजपूत जाति कहा जाने लगा। कवि चंदबरदाई के कथनानुसार राजपूतों की 36 जातियाँ थी। उस समय में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजघरानों का बहुत विस्तार हुआ। राजपूतों में मेवाड़ के महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान का नाम सबसे ऊंचा है।

राजपूत शब्द का अर्थ होता है राजा का पुत्र। राजा से राज और पुत्र से पूत आया है, यानि राजा का पुत्र से राजपूत | राजपूत एक हिँदी शब्द है जिसे हम संस्कृत मेँ राजपुत्र कहते हैँ।राजपुत सामान्यतः क्षत्रिय वर्ण मे आते है|राजस्थानी मे ये रजपुत के नाम से भी जाने जाते है। ।

Sarvesh Rana पुत्र श्री वीरेन्द्र सिह राणा ! जन्म १८ अक्टूब्र १९८४ सहारनपुर उत्त्तर प्रदेश .बड़े भाई सुधीर राणा और एक बड़ी बहन सीमा राणा से छोटे होते हुए भी सर्वेश राणा ने अपने जीवन मे बहुत मुस्किलो और कठिनाइयो का सामना करते हुए अपने जीवन को सुखमये बनाया , आपने अपने पिताजी श्री वीरेन्द्र सिह राणा ओर अपनी माता जी श्रीमती किरण बाला के चरित्र भगवान मे अत्यधिक भावना और सदेव अच्छाई के मार्ग पर चलते हुए आपने भी भगवान मे आस्था होने के साथ साथ आपने अपने धर्म गुरु के गयान गंगा मे डुबकी लगा कर और कई व्यक्तियो के जीवन को सुलभ ओर खुशल बनाया . दिनाक २६-फ़रवरी-२००९ को आपके जीवन मे नव ज्योति प्रजलित हुई ओर ज्योति राजपूत नामक कन्या से विवाह कर आप विवाह सूत्र बंधन मे बंद गये ! विवाह उपरांत आपके जीवन मे जैसे ख़ुसीयो की बेला खिल गई हो , तत उपरांत १०-जनवरी -२०१० को आपके घर मे आपकी धर्म पत्नी ज्योति राणा ने एक पुत्री को जन्म दिया , आपकी पुत्री अपने जन्म से ही अत्यधिक सुंदर और कोमल रूप से है . आपकी पुत्री का नाम आपके बड़े भाई सुधीर राणा ने अपनी पुत्री के नाम तनुश्री के स्वरूप नव जनमात पुत्री समान भतीजी का नाम ज्यश्री रखा ओर वर्तमान मे भारतिया रेल मे डाटा बेश इंजिनियर और साथ ही एम ए राजनीति शस्त्रा से आगे कि शिक्षा को सुचारू रूप से एम एम एच कॉलेज से प्राप्त कर रहे हो . आप गाज़ियाबाद जिले मे भारतिया जनता पार्टी के विजय नगर मंडल मे मंत्री है . आप पिछले १२ वर्षो से भारतिया जनता पार्टी के सक्रिया कार्यकर्ता के रूप मे योगदान दे रहे है ..अनुक्रम
१ राजपूतों की उत्पत्ति
२ इतिहास
३ राजपूतोँ के वँश
४ राजपूत जातियो की सूची
५ Bulleted list item
६ राजपूत शासन काल
७ राजपूत शासन काल
८ External links

राजपूतों की उत्पत्ति

इन राजपूत वंशों की उत्पत्ति के विषय में विद्धानों के दो मत प्रचलित हैं- एक का मानना है कि राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी है, जबकि दूसरे का मानना है कि, राजपूतों की उत्पत्ति भारतीय है। 12वीं शताब्दी के बाद् के उत्तर भारत के इतिहास को टोड ने 'राजपूत काल' भी कहा है। कुछ इतिहासकारों ने प्राचीन काल एवं मध्य काल को 'संधि काल' भी कहा है। इस काल के महत्वपूर्ण राजपूत वंशों में राष्ट्रकूट वंश, चालुक्य वंश, चौहान वंश, चंदेल वंश, परमार वंश एवं गहड़वाल वंश आदि आते हैं।

विदेशी उत्पत्ति के समर्थकों में महत्वपूर्ण स्थान 'कर्नल जेम्स टॉड' का है। वे राजपूतों को विदेशी सीथियन जाति की सन्तान मानते हैं। तर्क के समर्थन में टॉड ने दोनों जातियों (राजपूत एवं सीथियन) की सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति की समानता की बात कही है। उनके अनुसार दोनों में रहन-सहन, वेश-भूषा की समानता, मांसाहार का प्रचलन, रथ के द्वारा युद्ध को संचालित करना, याज्ञिक अनुष्ठानों का प्रचलन, अस्त्र-शस्त्र की पूजा का प्रचलन आदि से यह प्रतीत होता है कि राजपूत सीथियन के ही वंशज थे।

विलियम क्रुक ने 'कर्नल जेम्स टॉड' के मत का समर्थन किया है। 'वी.ए. स्मिथ' के अनुसार शक तथा कुषाण जैसी विदेशी जातियां भारत आकर यहां के समाज में पूर्णतः घुल-मिल गयीं। इन देशी एवं विदेशी जातियों के मिश्रण से ही राजपूतों की उत्पत्ति हुई।

भारतीय इतिहासकारों में 'ईश्वरी प्रसाद' एवं 'डी.आर. भंडारकर' ने भारतीय समाज में विदेशी मूल के लोगों के सम्मिलित होने को ही राजपूतों की उत्पत्ति का कारण माना है। भण्डारकर, कनिंघम आदि ने इन्हे विदेशी बताया है। । इन तमाम विद्वानों के तर्को के आधार पर निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि, यद्यपि राजपूत क्षत्रियों के वंशज थे, फिर भी उनमें विदेशी रक्त का मिश्रण अवश्य था। अतः वे न तो पूर्णतः विदेशी थे, न तो पूर्णत भारतीय।
इतिहास

राजपूतोँ का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। हिँदू धर्म के अनुसार राजपूतोँ का काम शासन चलाना होता है।कुछ राजपुतवन्श अपने को भगवान श्री राम के वन्शज बताते है।राजस्थान का अशिकन्श भाग ब्रिटिश काल मे राजपुताना के नाम से जाना जाता था।
राजपूतोँ के वँश

"दस रवि से दस चन्द्र से बारह ऋषिज प्रमाण, चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण, भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान, चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण."

अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।

सूर्य वंश की दस शाखायें:-

१. कछवाह२. राठौड ३. बडगूजर४. सिकरवार५. सिसोदिया ६.गहलोत ७.गौर ८.गहलबार ९.रेकबार १०.जुनने

चन्द्र वंश की दस शाखायें:-

१.जादौन२.भाटी३.तोमर४.चन्देल५.छोंकर६.होंड७.पुण्डीर८.कटैरिया९.स्वांगवंश १०.वैस

अग्निवंश की चार शाखायें:-

१.चौहान२.सोलंकी३.परिहार ४.पमार.

ऋषिवंश की बारह शाखायें:-

१.सेंगर२.दीक्षित३.दायमा४.गौतम५.अनवार (राजा जनक के वंशज)६.विसेन७.करछुल८.हय९.अबकू तबकू १०.कठोक्स ११.द्लेला १२.बुन्देला चौहान वंश की चौबीस शाखायें:-

१.हाडा २.खींची ३.सोनीगारा ४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा ७.मेलवाल८.भदौरिया ९.निर्वाण १०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा १३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेछा १७.रूसिया १८.चांदा१९.निकूम २०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा २४.बनकर
राजपूत जातियो की सूची

# क्रमांक नाम गोत्र वंश स्थान और जिला

१. सूर्यवंशी भारद्वाज सूर्य बुलन्दशहर आगरा मेरठ अलीगढ

२. गहलोत बैजवापेण सूर्य मथुरा कानपुर और पूर्वी जिले

३. सिसोदिया बैजवापेड सूर्य महाराणा उदयपुर स्टेट

४. कछवाहा मानव सूर्य महाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य

५. राठोड कश्यप सूर्य जोधपुर बीकानेर और पूर्व और मालवा

६. सोमवंशी अत्रय चन्द प्रतापगढ और जिला हरदोई

७. यदुवंशी अत्रय चन्द राजकरौली राजपूताने में

८. भाटी अत्रय जादौन महारजा जैसलमेर राजपूताना

९. जाडेचा अत्रय यदुवंशी महाराजा कच्छ भुज

१०. जादवा अत्रय जादौन शाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा

११. तोमर व्याघ्र चन्द पाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर

१२. कटियार व्याघ्र तोंवर धरमपुर का राज और हरदोई

१३. पालीवार व्याघ्र तोंवर गोरखपुर

१४. परिहार कौशल्य अग्नि इतिहास में जानना चाहिये

१५. तखी कौशल्य परिहार पंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में

१६. पंवार वशिष्ठ अग्नि मालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया

१७. सोलंकी भारद्वाज अग्नि राजपूताना मालवा सोरों जिला एटा

१८. चौहान वत्स अग्नि राजपूताना पूर्व और सर्वत्र

१९. हाडा वत्स चौहान कोटा बूंदी और हाडौती देश

२०. खींची वत्स चौहान खींचीवाडा मालवा ग्वालियर

२१. भदौरिया वत्स चौहान नौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर

२२. देवडा वत्स चौहान राजपूताना सिरोही राज

२३. शम्भरी वत्स चौहान नीमराणा रानी का रायपुर पंजाब

२४. बच्छगोत्री वत्स चौहान प्रतापगढ सुल्तानपुर

२५. राजकुमार वत्स चौहान दियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला

२६. पवैया वत्स चौहान ग्वालियर

२७. गौर,गौड भारद्वाज सूर्य शिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ

२८. वैस भारद्वाज चन्द्र उन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में

२९. गेहरवार कश्यप सूर्य माडा हरदोई उन्नाव बांदा पूर्व

३०. सेंगर गौतम ब्रह्मक्षत्रिय जगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन

३१. कनपुरिया भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय पूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं

३२. बिसैन वत्स ब्रह्मक्षत्रिय गोरखपुर गोंडा प्रतापगढ में हैं

३३. निकुम्भ वशिष्ठ सूर्य गोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर

३४. सिरसेत भारद्वाज सूर्य गाजीपुर बस्ती गोरखपुर

३५. कटहरिया वशिष्ठ्याभारद्वाज, सूर्य बरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर

३६. वाच्छिल अत्रयवच्छिल चन्द्र मथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर

३७. बढगूजर वशिष्ठ सूर्य अनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर

३८. झाला मरीच कश्यप चन्द्र धागधरा मेवाड झालावाड कोटा

३९. गौतम गौतम ब्रह्मक्षत्रिय राजा अर्गल फ़तेहपुर

४०. रैकवार भारद्वाज सूर्य बहरायच सीतापुर बाराबंकी

४१. करचुल हैहय कृष्णात्रेय चन्द्र बलिया फ़ैजाबाद अवध

४२. चन्देल चान्द्रायन चन्द्रवंशी गिद्धौर कानपुर फ़र्रुखाबाद बुन्देलखंड पंजाब गुजरात

४३. जनवार कौशल्य सोलंकी शाखा बलरामपुर अवध के जिलों में

४४. बहरेलिया भारद्वाज वैस की गोद सिसोदिया रायबरेली बाराबंकी

४५. दीत्तत कश्यप सूर्यवंश की शाखा उन्नाव बस्ती प्रतापगढ जौनपुर रायबरेली बांदा

४६. सिलार शौनिक चन्द्र सूरत राजपूतानी

४७. सिकरवार भारद्वाज बढगूजर ग्वालियर आगरा और उत्तरप्रदेश में

४८. सुरवार गर्ग सूर्य कठियावाड में

४९. सुर्वैया वशिष्ठ यदुवंश काठियावाड

५०. मोरी ब्रह्मगौतम सूर्य मथुरा आगरा धौलपुर

५१. टांक (तत्तक) शौनिक नागवंश मैनपुरी और पंजाब

५२. गुप्त गार्ग्य चन्द्र अब इस वंश का पता नही है

५३. कौशिक कौशिक चन्द्र बलिया आजमगढ गोरखपुर

५४. भृगुवंशी भार्गव चन्द्र वनारस बलिया आजमगढ गोरखपुर

५५. गर्गवंशी गर्ग ब्रह्मक्षत्रिय नृसिंहपुर सुल्तानपुर

५६. पडियारिया, देवल,सांकृतसाम ब्रह्मक्षत्रिय राजपूताना

५७. ननवग कौशल्य चन्द्र जौनपुर जिला

५८. वनाफ़र पाराशर,कश्यप चन्द्र बुन्देलखन्ड बांदा वनारस

५९. जैसवार कश्यप यदुवंशी मिर्जापुर एटा मैनपुरी

६०. चौलवंश भारद्वाज सूर्य दक्षिण मद्रास तमिलनाडु कर्नाटक में

६१. निमवंशी कश्यप सूर्य संयुक्त प्रांत

६२. वैनवंशी वैन्य सोमवंशी मिर्जापुर

६३. दाहिमा गार्गेय ब्रह्मक्षत्रिय काठियावाड राजपूताना

६४. पुण्डीर कपिल ब्रह्मक्षत्रिय पंजाब गुजरात रींवा यू.पी.

६५. तुलवा आत्रेय चन्द्र राजाविजयनगर

६६. कटोच कश्यप भूमिवंश राजानादौन कोटकांगडा

६७. चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावत वशिष्ठ पंवार की शाखा मलवा रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड

६८. अहवन वशिष्ठ चावडा,कुमावत खेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी

६९. डौडिया वशिष्ठ पंवार शाखा बुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब

७०. गोहिल बैजबापेण गहलोत शाखा काठियावाड

७१. बुन्देला कश्यप गहरवारशाखा बुन्देलखंड के रजवाडे

७२. काठी कश्यप गहरवारशाखा काठियावाड झांसी बांदा

७३. जोहिया पाराशर चन्द्र पंजाब देश मे

७४. गढावंशी कांवायन चन्द्र गढावाडी के लिंगपट्टम में

७५. मौखरी अत्रय चन्द्र प्राचीन राजवंश था

७६. लिच्छिवी कश्यप सूर्य प्राचीन राजवंश था

७७. बाकाटक विष्णुवर्धन सूर्य अब पता नहीं चलता है

७८. पाल कश्यप सूर्य यह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है

७९. सैन अत्रय ब्रह्मक्षत्रिय यह वंश भी भारत में बिखर गया है

८०. कदम्ब मान्डग्य ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण महाराष्ट्र मे हैं

८१. पोलच भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण में मराठा के पास में है

८२. बाणवंश कश्यप असुरवंश श्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा में

८३. काकुतीय भारद्वाज चन्द्र,प्राचीन सूर्य था अब पता नही मिलता है

८४. सुणग वंश भारद्वाज चन्द्र,पाचीन सूर्य था, अब पता नही मिलता है

८५. दहिया कश्यप राठौड शाखा मारवाड में जोधपुर

८६. जेठवा कश्यप हनुमानवंशी राजधूमली काठियावाड

८७. मोहिल वत्स चौहान शाखा महाराष्ट्र मे है

८८. बल्ला भारद्वाज सूर्य काठियावाड मे मिलते हैं

८९. डाबी वशिष्ठ यदुवंश राजस्थान

९०. खरवड वशिष्ठ यदुवंश मेवाड उदयपुर

९१. सुकेत भारद्वाज गौड की शाखा पंजाब में पहाडी राजा

९२. पांड्य अत्रय चन्द अब इस वंश का पता नहीं

९३. पठानिया पाराशर वनाफ़रशाखा पठानकोट राजा पंजाब

९४. बमटेला शांडल्य विसेन शाखा हरदोई फ़र्रुखाबाद

९५. बारहगैया वत्स चौहान गाजीपुर

९६. भैंसोलिया वत्स चौहान भैंसोल गाग सुल्तानपुर

९७. चन्दोसिया भारद्वाज वैस सुल्तानपुर

९८. चौपटखम्ब कश्यप ब्रह्मक्षत्रिय जौनपुर

९९. धाकरे भारद्वाज(भृगु) ब्रह्मक्षत्रिय आगरा मथुरा मैनपुरी इटावा हरदोई बुलन्दशहर

१००. धन्वस्त यमदाग्नि ब्रह्मक्षत्रिय जौनपुर आजमगढ वनारस

१०१. धेकाहा कश्यप पंवार की शाखा भोजपुर शाहाबाद

१०२. दोबर(दोनवर) वत्स या कश्यप ब्रह्मक्षत्रिय गाजीपुर बलिया आजमगढ गोरखपुर

१०३. हरद्वार भार्गव चन्द्र शाखा आजमगढ

१०४. जायस कश्यप राठौड की शाखा रायबरेली मथुरा

१०५. जरोलिया व्याघ्रपद चन्द्र बुलन्दशहर

१०६. जसावत मानव्य कछवाह शाखा मथुरा आगरा

१०७. जोतियाना(भुटियाना) मानव्य कश्यप,कछवाह शाखा मुजफ़्फ़रनगर मेरठ

१०८. घोडेवाहा मानव्य कछवाह शाखा लुधियाना होशियारपुर जालन्धर

१०९. कछनिया शान्डिल्य ब्रह्मक्षत्रिय अवध के जिलों में

११०. काकन भृगु ब्रह्मक्षत्रिय गाजीपुर आजमगढ

१११. कासिब कश्यप कछवाह शाखा शाहजहांपुर

११२. किनवार कश्यप सेंगर की शाखा पूर्व बंगाल और बिहार में

११३. बरहिया गौतम सेंगर की शाखा पूर्व बंगाल और बिहार

११४. लौतमिया भारद्वाज बढगूजर शाखा बलिया गाजी पुर शाहाबाद

११५. मौनस मानव्य कछवाह शाखा मिर्जापुर प्रयाग जौनपुर

११६. नगबक मानव्य कछवाह शाखा जौनपुर आजमगढ मिर्जापुर

११७. पलवार व्याघ्र सोमवंशी शाखा आजमगढ फ़ैजाबाद गोरखपुर

११८. रायजादे पाराशर चन्द्र की शाखा पूर्व अवध में

११९. सिंहेल कश्यप सूर्य आजमगढ परगना मोहम्दाबाद

१२०. तरकड कश्यप दीक्षित शाखा आगरा मथुरा

१२१. तिसहिया कौशल्य परिहार इलाहाबाद परगना हंडिया

१२२. तिरोता कश्यप तंवर की शाखा आरा शाहाबाद भोजपुर

१२३. उदमतिया वत्स ब्रह्मक्षत्रिय आजमगढ गोरखपुर

१२४. भाले वशिष्ठ पंवार अलीगढ

१२५. भालेसुल्तान भारद्वाज वैस की शाखा रायबरेली लखनऊ उन्नाव

१२६. जैवार व्याघ्र तंवर की शाखा दतिया झांसी बुन्देलखंड

१२७. सरगैयां व्याघ्र सोमवंश हमीरपुर बुन्देलखण्ड

१२८. किसनातिल अत्रय तोमरशाखा दतिया बुन्देलखंड

१२९. टडैया भारद्वाज सोलंकीशाखा झांसी ललितपुर बुन्देलखंड

१३०. खागर अत्रय यदुवंश शाखा जालौन हमीरपुर झांसी

१३१. पिपरिया भारद्वाज गौडों की शाखा बुन्देलखंड

१३२. सिरसवार अत्रय चन्द्र शाखा बुन्देलखंड

१३३. खींचर वत्स चौहान शाखा फ़तेहपुर में असौंथड राज्य

१३४. खाती कश्यप दीक्षित शाखा बुन्देलखंड,राजस्थान में कम संख्या होने के कारण इन्हे बढई गिना जाने लगा

१३५. आहडिया बैजवापेण गहलोत आजमगढ

१३६. उदावत बैजवापेण गहलोत आजमगढ

१३७. उजैने वशिष्ठ पंवार आरा डुमरिया

१३८. अमेठिया भारद्वाज गौड अमेठी लखनऊ सीतापुर

१३९. दुर्गवंशी कश्यप दीक्षित राजा जौनपुर राजाबाजार

१४०. बिलखरिया कश्यप दीक्षित प्रतापगढ उमरी राजा

१४१. डोमरा कश्यप सूर्य कश्मीर राज्य और बलिया

१४२. निर्वाण वत्स चौहान राजपूताना (राजस्थान)

१४३. जाटू व्याघ्र तोमर राजस्थान,हिसार पंजाब

१४४. नरौनी मानव्य कछवाहा बलिया आरा

१४५. भनवग भारद्वाज कनपुरिया जौनपुर

१४६. गिदवरिया वशिष्ठ पंवार बिहार मुंगेर भागलपुर

१४७. रक्षेल कश्यप सूर्य रीवा राज्य में बघेलखंड

१४८. कटारिया भारद्वाज सोलंकी झांसी मालवा बुन्देलखंड

१४९. रजवार वत्स चौहान पूर्व मे बुन्देलखंड

१५०. द्वार व्याघ्र तोमर जालौन झांसी हमीरपुर

१५१. इन्दौरिया व्याघ्र तोमर आगरा मथुरा बुलन्दशहर

१५२. छोकर अत्रय यदुवंश अलीगढ मथुरा बुलन्दशहर

१५३. जांगडा वत्स चौहान बुलन्दशहर पूर्व में झांसी

राजपूत शासन काल

महाराणा प्रताप महान राजपुत राजा हुए।इन्होने अकबर से लडाई लडी थी।महाराना प्रताप जी का जन्म मेवार मे हुआ था |वे बहुत बहदुर राजपूत राजा थे।महाराना प्रताप जी का जन्म मेवार मे हुआ था |वे बहुत बहदुर राजपूत राजा थे|
राजपूत शासन काल

"राजपूत" (anonymous, c.1860)
From the collection of the British Library

शूरबाहूषु लोकोऽयं लम्बते पुत्रवत् सदा । तस्मात् सर्वास्ववस्थासु शूरः सम्मानमर्हित।।

राजपुत्रौ कुशलिनौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ । सर्वशाखामर्गेन्द्रेण सुग्रीवेणािभपालितौ ।।

स राजपुत्रो वव्र्धे आशु शुक्ल इवोडुपः । आपूर्यमाणः पित्र्िभः काष्ठािभिरव सोऽन्वहम्।।

सिंह-सवन सत्पुरुष-वचन कदलन फलत इक बार। तिरया-तेल हम्मीर-हठ चढे न दूजी बार॥

क्षित्रय तनु धिर समर सकाना । कुल कलंक तेहि पामर जाना ।।

बरसै बदिरया सावन की, सावन की मन भावन की। सावन मे उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हिर आवन की।।

उमड घुमड चहुं दिससे आयो, दामण दमके झर लावन की। नान्हीं नान्हीं बूंदन मेहा बरसै, सीतल पवन सोहावन की।।

मीराँ के पृभु गिरधर नागर, आनंद मंगल गावन की।।

हेरी म्हा दरद दिवाणाँ, म्हारा दरद न जाण्याँ कोय । घायल री गत घायल जाण्याँ, िहबडो अगण सन्जोय ।।

जौहर की गत जौहरी जाणै, क्या जाण्याँ जण खोय । मीराँ री प्रभु पीर मिटाँगा, जब वैद साँवरो होय ।।

 राजपूत
चित्रकार राजा रवि वर्मा

१९३१ की जनगणना के अनुसार भारत में १२.८ मिलियन राजपूत थे जिनमे से ५०००० सिख, २.१ मिलियन मुसलमान और शेष हिन्दू थे।

हिन्दू राजपूत क्षत्रिय कुल के होते हैं।

शेखावत या शेखावत सूर्यवंशी कछवाह

शेखावत या शेखावत सूर्यवंशी कछवाह राजपूत - सूर्य वंश - कछवाह - शाखा - शेखावत कछवाह शेखावत -  शेखा जी  के वंशज शेखावत कहलाते हैँ। शेखा जी ...